2007 मे थी भाजपा सरकार
2012 में बनी कांग्रेस सरकार
देहरादून- सूबे में 2009 से चर्चित सेहत महकमें के टैक्सी बिल घोटाले में दोषियों की सजा कार्मिक विभाग तय करेगा। अपर मुख्य सचिव ने इस मामले में कार्रवाई से पहले कार्मिक विभाग को पत्र भेजकर सजा को लेकर राय मांगी है।
दरअसल स्वास्थ्य विभाग के दोषी अफसर तो स्वास्थ्य विभाग के अधीन आते हैं। लेकिन सीएम के निजी सचिव और अन्य विभागों के कर्मचारी स्वास्थ्य के अधीन नहीं आते। ऐसे में कर्मचारियों को क्या और कैसे सजा दी जाए इस पर निर्णय लेना कठिन हो रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि फर्जी बिलों के भुगतान के लिए सीएमओ, सीएमएस के अलावा मुख्यमंत्री के निजी सचिव और कई अन्य कर्मचारी भी दोषी हैं। ऐसे में यदि कर्मचारियों से वसूली की जाए तो उसका बंटवारा कैसे होगा।
इसके अलावा सजा को लेकर दूसरे विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है। इस मामले में किसी को भी गलत सजा न दी जाए और बाद में मामला कोर्ट में न उलझे इसके लिए फाइल कार्मिक विभाग में भेजी गई है। अधिकारियों ने बताया कि अब कार्मिक विभाग तय करेगा कि टैक्सी बिल घोटाले में दोषियों पर क्या कार्रवाई की जाए। कार्मिक की ओर से इस संदर्भ में फाइल आने के बाद ही दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।
स्वास्थ्य विभाग में 2009 से 2013 तक मुख्यमंत्रियों के टूर के नाम पर टैक्सी बिलों का भुगतान हुआ था। जो पौने दो करोड़ के करीब का था। विभाग की जांच में सामने आया कि अफसरों ने ट्रेवल एजेंसियों से मिलकर गलत तरीके से भुगतान करा लिया। इस मामले में कोषागार, शासन और स्वास्थ्य महानिदेशालय व सीएमओ कार्यालय की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई थी।
घोटाले का मामला मीडिया में उछलने और तूल पकड़ने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने अपर निदेशक एलके गुसाईं से जांच कराई। उन्होंने रिपोर्ट में विभाग के 12 अफसरों को दोषी पाया। हालांकि महानिदेशक स्वास्थ्य ने मामले में शासन की भूमिका देखते हुए शासन से समग्र जांच की जरूरत बताई। इस पर जांच अपर सचिव आशीष जोशी से कराई। पर उन्होंने अधूरी रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद अपर सचिव किशन नाथ को जांच सौंपी गई। उन्होंने जांच करने से इंकार कर दिया। बाद में संयुक्त सचिव आरआर सिंह ने जांच की। जिसमें स्वास्थ्य विभाग के 12 अफसरों के साथ दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के पांच निजी सचिवों को दोषी पाया गया। इसे षड्यंत्र बताते हुए सीबीसीआईडी जांच की जरूरत बताई थी। लेकिन गृह विभाग ने सीबीसीआईडी जांच कराने से इंकार कर दिया है।