देहरादून: शिक्षा विभाग में हमेशा से सेटिंग-गेटिंग का खेल खेला जाता रहा है। खासकर ट्रांसफर-पोस्टिंग में ये खेल सालों से चला आ रहा है। ये खेल एक बार फिर से सामने आया गया है। हाल ही में शिक्षा विभाग में हुए शिक्षकों के तबादलों में बड़ा खेल देखने को मिला। कई शिक्षक ऐसे हैं जो सालों से पहाड़ों में ही तैनात हैं। उनको स्थानांतरण अब शिक्षा विभाग के किसी भी नियम के तहत नहीं हो पाया, जबकि वो अनिवार्य ट्रांसफर और पति-पत्नी वाले मानक में भी ट्रांसफर के योग्य था। वहीं, दूसरी ओर पर्वतीय जनपदों में 70 फीसदी शिक्षकों के पद भरे बगैर ही विभाग ने चार जनपदों के मैदानी क्षेत्रों में अपने चहेते शिक्षकों के तबादले कर दिए। जबकि विभाग में 40 से 50 प्रतिशत तक दिव्यांग दिव्यांग शिक्षिकाओं के दबादलों की विभाग सुध ही नहीं ले रहा है।
समिति गठित
इस तरह रके तबादलों के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति गठित की जाती है, लेकिन इस समिति में भी इनके तबादलों का प्रस्ताव नहीं भेजा गया। पति-पत्नी, बीमार कैटेगरी के दबादलों की फाइल भी मुख्य सचिव के पास नहीं भेजी गई। इस मामले में शिक्षा मंत्री का कहना है कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने शिक्षकों के तबादले किए हैं।
55 फीसदी दिव्यांग
अमर उजाला डाॅट काॅम के अनुसार राजकीय इंटर कालेज रानीचैरी जनपद टिहरी गढ़वाल में रसायन विज्ञान की प्रवक्ता अंजू सैनी के मुताबिक वह 55 फीसदी दिव्यांग है। पांव खराब होने से वह ठीक से पहाड़ में चल नहीं पातीं। उनके पास दिव्यांगता का प्रमाण पत्र है। शासनादेश में भी साफ उल्लेख है। तबादले के लिए उन्होंने विभाग को आठ विकल्प दिए, लेकिन विभाग ने उनका तबादला नहीं किया। जबकि अनुरोध के आधार पर कुछ अन्य शिक्षकों के तबादले किए गए हैं।
40 फीसदी दिव्यांग
एक अन्य मामले में जीआईसी कठुली खिर्सू पौड़ी गढ़वाल में कार्यरत आरती सेमवाल के मुताबिक वह 40 फीसदी दिव्यांग हैं। दिव्यांगता के आधार पर ही उनकी विभाग में नियुक्ति हुई ह पिछले 13 वर्षों से दुर्गम विद्यालय में कार्यरत हैं। तबादले के लिए अनुरोध किया था, लेकिन विभाग ने यह कहते हुए तबादले से इनकार कर दिया गया कि हाईकोर्ट के एक आदेश के चलते चार मैदानी जनपदों के सुगम स्कूलों में शिक्षकों के तबादले नहीं किए जा सकते।