किसी को बताइएगा मत, सिर्फ अपने तक रखिएगा।
जानते हैं, राज्य का निर्वाचन आयोग भी निकाय चुनाव समय पर कराना चाहता और सरकार भी चाहती लेकिन सच ये है कि निकाय चुनाव समय पर अब किसी हाल में नहीं हो सकते।
है न मजेदार बात। जब आयोग चाहता, सरकार चाहती है तो चुनाव समय पर क्यों नहीं? लगता है जनता ही नहीं चाहती।
बोलिए साहब,
अच्छा छोड़िए,
पहले सुनिए।
राज्य के निर्वाचन आयुक्त सुवर्धन कह रहें हैं कि राज्य सरकार की लेटलतीफी के चलते अब निकाय चुनाव समय पर नहीं हो सकते। हर हाल में निकाय चुनावों का रिजल्ट 3 मई तक आ जाना चाहिए था लेकिन सरकार परिसीमन के फेर में फंसी रही और आयोग को चुनाव के लिए हरी झंडी नहीं दी।
न तो सीएम साहब ने मिलने का समय दिया और न ही ईवीएम की खरीद के लिए मांगी गई 17 करोड़ की धनराशि दी। ये वो ईवीएम लगनी थीं जिनमें वीवीपैट मशीन लगी होती। यानी आपके वोट की रसीद साथ मिलती।
निर्वाचन आयुक्त कहते हैं कि आयोग की ओर से सभी तैयारियां पूरी हैं लेकिन 3 अप्रैल तक उन्हें सरकार की ओर से चुनाव कराने के लिए हरी झंडी नहीं दी गई। आयोग को भी सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने में 25 से 30 दिन का समय चाहिए। फिर मतदान और मतगणना का भी समय लगेगा। ऐसे में अब 3 मई तक चुनाव परिणाम नहीं आ सकते। लिहाजा आयोग ने कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दे दी है।
अब बात सरकार की सुनिए।
राज्य सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक बिना पानी पिए ही इस बात का दावा करते हैं कि सरकार समय पर कराने के लिए पूरा सहयोग कर रही है। मुख्यमंत्री के साथ आयोग की बैठक भी हो चुकी है और अन्य अधिकारियों के साथ भी। लिहाजा असहयोग का सवाल ही नहीं उठता। हालांकि वो ये नहीं बता पाते कि क्या सरकार को परिसीमन की प्रक्रिया पूरी करने में लगने वाले वक्त के बारे में नहीं पता था। नहीं पता तो बलिहारी आपकी, पता था तो इतनी जल्दी क्या थी।
सुन ली न आपने।
अब क्या समझ में आया।
कौन नहीं चाहता कि समय पर चुनाव हों?
हुजूर, अब तो पक्का जनता ही नहीं चाहती।