उत्तराखंड में इस लोकसभा चुनावों में जिस शख्स की हार सबसे अधिक चर्चा का विषय बनी हुई है वो हैं हरीश रावत। हरीश रावत ने खुद ही अपने लिए नैनीताल लोकसभा सीट का टिकट मांगा था और कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया भी। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से ही हरीश रावत लगातार इस इलाके में लोगों के साथ मिलते रहे और अपना जनाधार बनाने की कोशिश में लगे रहे इसके बावजूद बीजेपी के अजय भट्ट ने उन्हें तीन लाख उनतालीस हजार से अधिक वोटों से हरा दिया। हरीश रावत के राजनीतिक कैरियर की ये सबसे बड़ी हार है।
सियासी गलियारों में अब हरीश रावत के राजनीतिक कैरियर को लेकर चर्चाएं हो रहीं हैं। हालांकि हरदा ने इशारा किया है कि वो हार नहीं मानने वालें हैं लेकिन बड़ा सवाल यही है कि अब आगे क्या? क्या पार्टी उनपर एक बार फिर से भरोसा कर विधानसभा चुनावों के लिए उनकी मदद लेगी। हालांकि इसमें भी संदेह जताया जा रहा है क्योंकि हरदा बीते विधानसभा चुनावों में दो सीटों से हार चुके हैं। ऐसे में अगले विधानसभा चुनावों में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिले ऐसा मुश्किल है।
फिर लोकसभा के चुनावों के लिए उन्हें पांच सालों का इंतजार करना होगा। ऐसे में बढ़ती उम्र और कांग्रेस की सेकेंड लाइन उनके आड़े आ सकती है। फिर हरदा का संसदीय चुनावों में जीत से अधिक हार का रिकॉर्ड हो गया है। हरिद्वार में हार के डर से ही वो नैनीताल सीट पर आए थे। पार्टी के मना करने के बाद भी उन्होंने नैनीताल सीट से ही दावेदारी करने की जिद ठान ली थी। इसके लिए बाकायदा उनके समर्थक विधायकों ने दिल्ली में डेरा तक डाल दिया था लेकिन सभी की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि हरीश रावत का राजनीतिक कैरियर अब किस ओर जाएगा।