जो आज तक नहीं हुआ इस चुनाव मे हो रहा है
ब्यूरो- उत्तराखंड के सोलह साल के इतिहास में 2017 का विधानसभा चुनाव चौथा चुनाव है। 2002,2007 और 2012 के चुनाव के बाद 2017 में चौथी बार सूबे कि जनता अपने लिए भाग्य विधाता चुनने जा रही है। इस चुनाव में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो राज्य के लिहाज से पहली बार हो रहा है और इतिहास बनने जा रहा है। एक नजर उन तमाम घटनाओं पर जो उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में पहली बार हो रहा है।
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2002 से लेकर 2012 तक तीन चुनाव हुए लेकिन आज तक किसी भी प्रत्याशी के नामांकन जलूस में गोली नहीं चली, बवाल नहीं मचा और लोग घायल नहीं हुए। शांत राज्य माने जाने वाले उत्तराखंड के दामन पर सियासत ने दाग लगा दिया।
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उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी प्रत्याशी के नामांकन जलूस में हथियार लहराए गए हों और आचार संहिता का चीर हरण करने की इतने बड़े पैमाने पर नजायज कोशिश की गई हो। हालांकि आचार संहिता की हिफाजत करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर गाज भी गिरी चुनाव आयोग ने कार्यवाही करते हुए डीएम और कप्तान को उनके पदों से हटाया ऐसा भी उत्तराखंड पहली बार हुआ ।
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उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में ऐसा भी पहली बार हुआ कि पार्टी के घोषणा पत्र से पहले किसी मुख्यमंत्री ने अपने लोकलुभावन वादों के साथ अलग से संकल्प पत्र जारी किया हो ।
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ऐसा भी उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में पहली बार हुआ कि किसी राष्ट्रीय पार्टी जो कि सत्ता का केंद्र बिंदु हो उसने अपने कार्यकर्ता के बजाए किसी निर्दलीय को अपना समर्थन देने का ऐलान किया हो और बाकायदा इसके लिए आलाकमान ने एक पत्र जारी किया हो।
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उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में ऐसा भी पहली बार हो रहा है कि जब थोक के भाव में चुनावी घड़ी में कद्दावर माने जाने वाले नेताओं ने अपनी सालों पुरानी निष्ठाएं पलक झपकते ही दूसरे दल को सौंप दी हों।
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उत्तराखंड के चुनावी इतिहास मे ऐसा भी पहली बार हो रहा है कि जब सियासी दल अपने प्रचार के लिए आधुनीक तकनीक(डिजीटल,थ्रीडी)से सुसज्जित प्रचार वाहनों का इस्तमाल प्रचार के लिए कर रहे हों। शायद उत्तराखंड बदल रहा है