श्रीनगर – कितनी अजीब बात है कि जब से वीर चंद्र सिंह गढ़वाली मेडिकल कॉलेज वजूद में आया है तब से लेकर अब तक सूबे की सरकार इस मेडिकल कॉलेज के बेहतर प्रबंधन का इंतजाम नहीं कर पाई है।
धरती के भगवान माने जाने वाले चिकित्सा जगत के महारथियों का भी पहाड़ी जनता के लिए दिल नहीं पसीजा। यहां तक कि डबल इंजन की सरकार के दौर में रक्षा मंत्रालय ने भी उत्तराखंड सरकार का प्रस्ताव ठुकरा दिया। ऐसे में मेडिकल कालेज की मान्यता बची रहेगी या नहीं कहना मुश्किल है। जबकि पहाड़ों के लिए संजीवनी बनने योग्य
आज आलम ये है कि जो मेडिकल कालेज किसी दौर में गढ़वाल के पहाड़ी हिस्से के लिए जिंदगी की उम्मीद था आज उसके वजूद पर ही संकट मंडरा रहा है। आलम ये है कि साल 2013 की तुलना में इस मेडिकल कॉलेज में फैकल्टी आधी रह गई है। साल 2013 में कालेज में 102 फैकल्टी तैनात थी, हर साल कमी आती रही है और इस साल 2018 फरवरी में महज 54 फैकल्टी के रहमो-करम पर मेडिकल कॉलेज जिंदा है।
माना जा रहा है कि अगर जल्द नई फैकल्टी की तैनाती न हई तो वीर चंद्र सिंह गढ़वाली मेडिकल कॉलेज की मान्यता संकट में पड़ सकती है। भयावह तस्वीर ये है कि मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया ने फैकल्टी की कमी के चलते इस मेडिकल कॉलेज को आठ विषयों में पीजी की मान्यता देने से इंकार कर दिया है।
ऐसे में अगर हालात नहीं सुधरे तो आने वाले समय में एमबीबीएस कोर्स का संचालन भी खतरे में पड़ सकता है। गौरतलब है कि MCI लगातार पांच साल निरीक्षण के बाद कॉलेज को एलओपी देती है। मान्यता के पांच साल बाद फिर कॉलेजों का निरीक्षण होता है।
अब गढ़वाल के वीर चंद्र सिंह गढ़वाली मेडिकल कॉलेज को मान्यता मिले पांच साल होने जा रहे हैं। ऐसे में किसी भी दिन कॉलेज का निरीक्षण हो सकता है। जबकि अभी पिछले दिनों मेडिकल कॉलेज में तैनात कई जूनियर रेजीडेंट मेड़िकल कॉलेज को छोड़कर जा चुके हैं। ऐसे में आने वाले वक्त में कॉलेज का वजूद रहेगा या नहीं कहना मुश्किल है।