देहरादून: गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया जाना उत्तराखंड के लिए एक बड़ा ऐतिहासिक फैसला है। इस फैसले के पीछे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की दृढ़ इच्छाशक्ति रही है। जो फैसला 20 साल में कोई न कर सका वो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कर दिखाया।
गैरसैंण-भराड़ीसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की ओर त्रिवेंद्र सरकार लगातार प्रयासरत थी। वहाँ लगातार संसाधन जुटाए जा रहे थे और अनवरत वहाँ कार्य किया जा रहा है। आखिर त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार ने उत्तराखंड की जनता से किया बहुत बड़ा वादा निभा दिया।
गैरसैंण के ग्रीष्मकालीन राजधानी बन जाने से पहाड़ और मैदान के विकास की खाई पूरी तरह पट जाएगी। सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिहाज से अब पहले से ज्यादा काम पहाड़ में होंगे। अब जनप्रतिनिधि और अफ़सरशाही पहाड़ चढ़ेंगे। निश्चित है कि उनको पहाड़ के अधूरे विकास कार्य दिखेंगे और वे उनको पूरा करने के लिए विवश होंगे। पहाड़ में और अधिक सुविधाएं जुटाई जाएंगी जिसका फायदा सबको मिलेगा। पहाड़ का पलायन रुकेगा और प्रवासी उत्तराखंडी अपने गांव को लौटने लगेंगे। इसका फायदा पूरे पहाड़ को मिलेगा। सामरिक दृष्टि से ये बेहद महत्वपूर्ण है। राज्य की सीमाएं चीन और नेपाल से लगी हैं। सीमाओं के गांव लगभग खाली हो चुके हैं। ये गांव गैरसैण से नजदीक हैं और अब यहाँ का न सिर्फ पलायन रुकेगा बल्कि यहाँ से पलायन कर चुके लोग गांव वापसी करेंगे।
गैरसैंण का मुद्दा हमेशा से पर्वतीय लोगों की जनभावनाओं से जुड़ा रहा है। इस पर हमेशा से राजनीति भी होती रही, लेकिन त्रिवेंद्र सरकार ने जनभावनाओं को सर्वोपरि रखकर इस पर होने वाली राजनीति पर भी विराम लगाया है।
जिस अवधारणा को लेकर आंदोलनकारियों ने राज्य गठन का सपना देखा था और 48 से ज्यादा आंदोलनकारियों ने शहादत दी थी, उनका सपना आज बीजेपी की सरकार ने पूरा किया है। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करते हुए मुख्यमंत्री भावुक हो गए थे। ये फैसला उत्तराखंड राज्य के लिए शहादत देने वाले आंदोलनकारियों को त्रिवेंद्र सिंह रावत की सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में भी देखा जाना चाहिए।