धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को मिले हुए हैं-
कश्मीर में पंचायत को अधिकार प्राप्त नहीं है।
कश्मीर में अल्पसंख्यकों [हिन्दू-सिख] को 16% आरक्षण नहीं मिलता।
धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।
धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई (RTI) और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते है।
जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।
जम्मू – कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है।
भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं।
भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।
जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
अनुच्छेद 35A के क्या हैं मायने
35A से जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय होते हैं
14 मई 1954 के पहले जो कश्मीर में बस गए थे वही स्थायी निवासी माना जाएगा
वह व्यक्ति जो जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं है, राज्य में सम्पत्ति नहीं खरीद सकता।
वह व्यक्ति जो जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं है, जम्मू और कश्मीर सरकार की नौकरियों के लिये आवेदन नहीं कर सकता।
वह व्यक्ति जो जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं है, जम्मू और कश्मीर सरकार के विश्विद्यालयों में दाखिला नहीं ले सकता, न ही राज्य सरकार द्वारा कोई वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकता है।
हालांकि धारा 370 में समय के साथ-साथ कई बदलाव भी किए गए हैं। 1965 तक वहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री नहीं होता था। उनकी जगह सदर-ए-रियासत और प्रधानमंत्री हुआ करता था, जिसे बाद में बदला गया।
इसके अलावा पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय नागरिक के जाने पर उसे अपने साथ पहचान-पत्र रखना जरूरी होता था, लेकिन बाद में विरोध के बाद इस प्रावधान को हटा दिया गया था।