हाथी की परी से लेकर बहरूपिये तक, इन गुमनाम हस्तियों को मिला पद्मा पुरूस्कार
असम की रहने वाली भारत की पहली महिला महावत पारबती बरुआ को सारा देश हाथी की परी के नाम से जानता है।
कर्नाटक के कासरगोड के किसान सत्यनारायण बेलेरी बीज संरक्षण का काम कर रहे हैं। ये पॉलीबैग में धान उगाकर अपनी खुद की नई तकनीक डेवलप कर चुके हैं।
त्रिपुरा की स्मृति रेखा चकमा सब्जियों से प्राकृतिक रंग बनाती हैं और उनसे सूती धागों को रंग देती हैं। इसके बाद उन्ही धागों का प्रयोग कर पारंपरिक डिजाइन तैयार करती हैं।
भिलवाड़ा के रहने वाले जानकी लाल बहरुपिए के साथ एक कला के वाहक और सरंक्षक भी हैं । लोग उनको बहरूपिया बाबा के नाम से जानते हैं।
अशोक कुमार बिश्वास बिहार की मौर्य कालीन कला टिकुली को पुनर्जीवित कर रहे हैं। ये 8000 से ज्यादा महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे चुके हैं।
ओमप्रकाश शर्मा ने मालवा के फेमस नाट्य पंरपरा 'माच' का अस्तित्व बनाए रखा है। उन्होंने न केवल थिएटर के लिए नाटक लिखते थे बल्कि उनका संगीत भी खुद ही देते थे