मसूरी गोलीकांड की 22 वीं बरसी
मसूरी में दी गई आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि
आंदोलनकारियों की याद में आंखे हुई नम
मसूरी –उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास के पन्ने जूनूनी आंदोलनकारियों के खून की स्याही से लिखे गए हैं। 1994 में अलग राज्य आंदोलन अपने चरम पर था। पौड़ी में 1 सितबंर को गढ़वाल कुमाऊ के छात्रों का महासम्मेलन हो रहा था तो खटीमा में भी राज्य आंदोलन के आंदोलनकारी सड़कों पर थे पुलिस ने निहत्थे राज्य आंदोलनकारियों पर गाेली चला दी। फिर तो आंदोलन कुचलने के लिए तत्कालीन मुलायम सरकार ने लाठी-गोली चलाने का सिलसिला जो शुरू किया उसने रामपुर तिराहे पर रुक कर ही सांस ली। 2 सितंबर 1994 को मसूरी में भी पुलिस ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसा दी। ये आंदोलनकारी खटीमा गोलीकांड के विरोध में मौन जलूस निकाल रहे थे। बर्बर पुलिस की इस गोलीबारी मे 6 आंदोलनकारियों की मौत हुई थी जबकि तत्कालीन मसूरी के सीओ उमाकांत त्रिपाठी भी अपनी ही पुलिस की गोलियों के शिकार हो गए थे।
6 आंदोलनकारियों में 2 महिलाएं भी थी हंसा धनाई और बेलमति चौहान जिन्होने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। चार अन्य आंदोलनकारियों में धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी, बलवीर सिंह नेगी और मदनमोहन ममगाई शामिल थे। मसूरी में बहे निहत्थे आंदोलनकारियों के लहू से पूरे पहाड़ में उबाल आ गया और अलग राज्य मिलने तक उसने पहाड़ के सीने में विरोध की ज्वाला जलाए रखी। खबर उत्तराखंड अलग राज्य के हर शहीद की शहादत को सलाम करता है।