देहरादून, – सूबे में ग्रामीणों की व्यथा सुनी जाए तो महसूस हो रहा है कि राज्य में सिर्फ ताज पहनने वालों की सूरत बदल रही है। सूबे की सीरत नहीं बदल रही है।
जनता को जिसकी दरकार है जनता राज्य निर्माण के 17 साल बाद भी उन्ही बुनियादी सहलूयतों के लिए तरस रही है। हाकिमों और शहशांहों से आज तक जिरह जारी है।
आलम ये है कि दूर-दराज के जो ग्रामीण पहले जिला मुख्यालयों पर अपनी फरियाद करते थे आज देहरादून पहुंच कर अपनी मामूली ख्वाहिशों की जरूरत के लिए हुक्मरानों से जंग लड़ने को मजबूर हैं। उत्तरकाशी जिले के मोरी तहसील से जुड़े चार गांवो के लोगों ने देहरादून के गांधी पार्क में पहुंचकर अपनी फरियाद सरकार से की।
देहरादून पहुंचे चार गांवों के लोगों में से एक युवा यशपाल पंवार की माने तो सड़क के आभाव में ग्रामीणों को तहसील तक पहुंचने में भी 15 से 18 किलोमीटर का सफर पैदल करने को मजबूर होना पड़ रहा है। गंगोत्री नेशनल पार्क से सटे इन गांवों में हालात ये हैं कि बरसात के मौसम में गांवों से संपर्क पूरी तरह कट जाता है।
ग्रामीणों का कहना है ऐसा नहीं कि आज से पहले गांवो की इस अहम जरूरत के बारे में सरकार,शासन,प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को खबर न की गई हो। हर चुनावी माहौल में अपनी फरियाद सुनाई गई है और उस पर आश्वासन भी मिला है। लेकिन सरकार बनने के बाद हुक्मरानों ने उनकी मामूली मांग को भी पहाड़ जैसा विकट बना दिया।
बताया जा रहा है कि आजादी के बाद से लगातार गांवों के लिए सड़क की सहूलियत की मांग वक्त-वक्त पर उठती रही। कभी दरख्वास्तों की शक्ल में तो कभी आंदोलनों के रूप में बावजूद इसके चार गांवों को सड़क नसीब नहीं हुई।
गौरतलब है कि लुंज-पुंज सिस्टम से उकताए ग्रामीण पिछले विधानसभा चुनाव में चुनावों का बहिष्कार भी कर चुके हैं। बावजूद इसके लोकतंत्र की दुहाई देने वाली सत्ता के कानों मे जूं तक नहीं रेंगी। हालांकि अबकी बार देखना है कि मोरी से देहरादून तक पहुंची जनता की ये मामूली फरियाद पूरी होती है या फिर उन्हें आश्वासनों के भरोंसे टरका दिया जाता है।