देहरादून : जिस आंगन में कभी किल्कारियां गूंजती थी…जिस आंगन में बच्चे खेलकर बड़े हुए…छुट्टी आने के बाद जिस आंगन में बेटे से बैठकर बात की आज उसी आंगन में फौजी बेटे के पार्थिव शरीर को देख मां-बाप पर क्या गुजरी ये हम सब समझ सकते हैं. गांव और गांव में कच्चा मकान…मकान के आगे पत्थरों का आंगन…जहां बैठकर सब कभी एक साथ चाय पिया करते थे..बातें किया करते थे…जिस आंगन से बेटियों की डोली उठी क्या मालूम था की उसी आंगने से बेटे की, एक भाई की अर्थी उठेगी.
जी हां जम्मू में अभियान के दौरान बम ब्लास्ट से शहीद हुए ग्राम स्यूँण जिला चमोली शहीद सुरजीत सिंह राणा का पार्थिव शरीर जैसी ही उनके पैतृक गांव और घर के आंगन में आया तो सिर्फ चीखें ही चीखें थी…उन चीखों में दर्द था…एक मां का, एक पिता का और बहनों औऱ परिजनों सहित गांव वालों का..जो कुछ बोलने की हालत में नहीं रहे होंगे…उनकी चीखें बता रही है कि क्या बीत रही है उनके दिल में.
सुरजीत सिंह राणा 10 गढ़वाल राइफल में तैनात थे
गौरतलब है कि स्यूण गांव के सुरजीत सिंह राणा 10 गढ़वाल राइफल में तैनात था। सुरजीत के शहीद होने पर कोई विश्वास नहीं कर रहा है। सुरजीत का जीवन हमेशा संघर्षमय रहा। सुरजीत 2008 में सेना में भर्ती हुए थे। सुरजीत के पिता प्रेम सिंह राणा उर्फ प्यारा सिंह का 22 साल पहले देहांत हो गया था। तब से सुरजीत ने पढ़ाई के साथ काम कर घर की आजीविका को आगे बढ़ाया। शहीद सुरजीत की पत्नी का भी एक वर्ष पूर्व देहांत हो गया था। शहीद के बच्चे भी नहीं हैं। शहीद के परिवार में उसकी बूढ़ी मां विश्वेश्वरी देवी के अलावा एक भाई महावीर सिंह राणा है। दो बहनों की शादी हो चुकी है। बताया गया कि शहीद सैनिक कुछ समय पहले ही घर से छुट्टी काट कर जम्मू गया था।