देहरादून : भला देश बहादुर जांबाज शहीद अफसर की शहादत को कैसे भूल सकता है…जन्मों-जन्मो तक शहीदों का नाम रहेगा जिन्होंने देश को बचाने के लिए अपनी जान की और परिवार की परवाह किए बिना अपनी प्राणों को न्यौछावर कर दिया. वहीं जब भी शहीदों की शहादत को याद करते हैं तो आज भी आंखों में आंसू आ जाते है.
देहरादून के नेहरू कॉलोनी निवासी शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट के पिता बेटे की मौत का गम भुला नहीं पा रहे हैं. जब कभी बेेटे का जिक्र और बेटे की बात की जाती है तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं. वो बेटे की पुरानी बातों को याद कर खूब रोते हैं. लगातार मीडिया कर्मी पिता का इंटरव्यू लेने उनके घर पहुंच रहे हैं उनमे से एक इंटरव्यू ये है जिसमें उन्होंने बेटे के जीवन से जु़ड़ी अहम बातें साझा की और रो पड़े.
पिता को की थी कार गिफ्ट
बेटे चित्रेश ने उन्हें एक कार गिफ्ट की थी और नंबर बेहद खासा लिया था जिस पर पिता ने उनसे नंबर के बारे में पूछा की ये नंबर क्यों लिया कोई वीआईपी नंबर लेते लेकिन बेटे ने जवाब दिया कि पापा मेरी कंपनी का नंबर 70 है औऱ 55 मेरी रेजीमेंट है इसलिए ये नंबर लिया.
पापा मुझे मेजर बन जाने तो तब शादी करुंगा
मेजर चित्रेश बिष्ट के पिता ने बताया कि बेटे में फौज मे जाने का पेशन था…वो दिल लगाकार काम करता था देश के लिए औऱ बेटे ने कहा था की पापा मुझे मेजर बन जाने तो तब शादी करुंगा.
16 फरवरी को आईईडी को डिफ्यूज करते हुए रजौरी में शहीद
आपको बता दें कि मेजर चित्रेश बिष्ट 16 फरवरी को आईईडी को डिफ्यूज करते हुए रजौरी मे शहीद हो गए थे और वो 28 फरवरी को घर आने वाले थे क्योंकि 7 मार्च को उनकी शादी थी. मेजर चित्रेश जनवरी में ही घर आए थे। उन्होंने ज्यादातर खरीदारी भी कर ली थी। शेरवानी से लेकर शूट तक तैयार कर लिया गया था। जब वे दो फरवरी को वापस ड्यूटी लौटे, तो मम्मी, पापा को से कहकर गए थे कि बस कार्ड बांट लेना। बाकी बाजार के काम मेरे आने के बाद कर लेंगे।
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