देहरादून- दूरदर्शन और आकाशवाणी में समाचार सम्पादक रहे राजेंद्र धस्माना के निधन के बाद पूरे उत्तराखंड में शोक की लहर दौड़ गई। सीएम से लेकर आम आदमी तक जिसका जरा भी उनसे परिचय रहा सभी धस्माना जी को याद कर रहे हैं। 16 मई को दुनिया को अलविदा कहने वाले राजेंद्र धस्माना आज हमारे बीच नहीं हैं। उनसे जुड़ी यादों पर उनके करीबी सोशल मीडिया में शेयर कर रहे हैं। सीपीआई(माले) से जुड़े प्रखर नेता इंद्रेश मैखुरी ने उनकी यादों को अपनी फेसबुक वॉल पर उकेरा है-
राजेन्द्र धस्माना दूरदर्शन और आकाशवाणी में समाचार सम्पादक रहे. सम्पूर्ण गांधी वांग्मय के कुछ खण्डों के वे सम्पादक रहे.दूरदर्शन से रिटायर होने के कई वर्षों बाद तक, दूरदर्शन वाले अपने बुलेटिनों का सम्पादन करने के लिए उन्हें बुलाते थे. वे लेखक थे,रंगकर्मी थे,पत्रकार थे.लेकिन इन सबसे ऊपर वे एक बेहतरीन इंसान थे.मस्त और फक्कड इंसान. उन्होंने न खुद को बहुत बड़ा आदमी समझा और न किसी दूसरे को ही इतना बड़ा समझा कि उसके सामने मुंह खोलने की हिम्मत न जुटाई जा सके.1994 में उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान वे दूरदर्शन की नौकरी में थे.लेकिन नौकरी के लिए उन्होंने अपने सरोकारों को कभी पीछे नहीं सरकाया. बड़े बांधों से होने वाला विनाश हो या फिर मानवाधिकारों का सवाल,उत्ताराखंड के तमाम सवालों पर वे हमेशा बहुत मुखर रहे.तमाम लोकतांत्रिक आंदोलनों के साथ उनका जुड़ाव था और वामपंथ के वे स्वाभाविक मित्र थे.
वे उस जमाने में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उच्च पद पर थे,जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नाम पर दूरदर्शन ही था.लेकिन बावजूद इसके,उनमें वह छिछला घमंड और अपने को तोप समझने की प्रवृत्ति नहीं थी, जो आजकल खुद का कैमरा खरीद कर,चैनलों की बेगार करते स्वयम्भू पत्रकारों में हर शहर, गली, मोहल्ले में नजर आती है.एक बार उत्तरकाशी के वरिष्ठ पत्रकार मदनमोहन बिज्ल्वाण जी ने किस्सा सुनाया था कि कैसे धस्माना जी की मदद से दूरदर्शन में अस्थायी संवाददाता की नौकरी पाने वाले,कालान्तर में करोड़ों के स्वामी हो गए और धस्माना जी वैसे ही रहे अलमस्त,फक्कड.1994 में “शायद सम्भावना” पत्रिका निकालने वाले कामरेड अतुल सती(जो वर्तमान में भाकपा(माले) के गढ़वाल सचिव हैं) के पास तो धस्माना जी के किस्सों की जैसे खान है.अतुल भाई कई बार बताते हैं,कैसे वे बहुतेरी बार लगभग बिना पैसों के दिल्ली पहुंचते थे.दिल्ली में पत्रिका छपावाने से लेकर वापसी के किराये तक के पैसों का इंतजाम होने का भरोसा इसीलिए होता था क्यूंकि वहां धस्माना जी, जो रहते थे.
उनके साथ बात करना हमेशा ही एक रोचक अनुभव होता था.बात किसी भी विषय से शुरू हो,वह पहुंचेगी दुनिया के तमाम विषयों तक.ऐसा लगता था कि आप एक चलते-फिरते इनसाइक्लोपीडिया से मुखातिब हैं.किसी एक विषय से शुरू हो कर अनंत बातचीत का वह सिलसिला अब हमेशा के लिए थम गया.विदा धस्माना जी,अलविदा.
फोटो -कमल जोशी,ख्यातिलब्द्ध छायाकार