30 साल बाद रामपुर तिराहा गोलीकांड में फैसला आया है। कोर्ट ने मुजफ्फरनगर जिले के चर्चित रामपुर तिराहा कांड-1994 में तीन दशक बाद अपना फैसला सुनाया है। फैसले के बाद से राज्य आंदोलनकारियों को देर से ही सही लेकिन न्याय मिल गया है।
रामपुर तिराहा गोलीकांड में आया फैसला
रामपुर तिराहा गोलीकांड में 30 साल बाद फैसला आया है। कोर्ट ने इस मामले के दो दोषियों को जो कि पीएसी के दो सिपाही थे उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही पीएसी के दोनों सिपाहियों पर एक-एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने फैसला सुनाया।
दोनों को अदालत ने 15 मार्च 2024 को आईपीसी की धारा 376 (2) (जी), 392, 354 और 509 के तहत दोषी ठहराया था। सोमवार को उनकी सजा तय की गई है। ट्रायल कोर्ट ने ये भी आदेश दिया कि जुर्माने की पूरी राशि पीड़िता को दी जाएगी।
25 जनवरी 1995 को दोनों के खिलाफ दर्ज किए गए थे मामले
आपको बता दें कि दुष्कर्म के मामले में सीबीआई ने 25 जनवरी 1995 को पीएसी सिपाही मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे। एक अक्टूबर 1994 को अलग राज्य की मांग कर रहे आंदोलनकारी बसों से दिल्ली जा रहे थे।
उन्हें देर रात मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर पुलिस ने रोका। लेकिन इसके बावजूद भी जब आंदोलनकारी नहीं रूके तो पुलिस ने फायरिंग कर दी। जिसमें सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। इसके साथ ही आंदोलनकारी महिलाओं की आबरू भी लूटी गई थी।
30 साल बाद मिला पीड़िता को मिला न्याय
एक अक्टूबर 1994 की रात करीब एक बजे रामपुर तिराहा पर आंदोलनकारियों की बस को रोका गया। दोनों दोषियों ने बस में चढ़कर महिला आंदोलनकारी के साथ छेड़खानी की इसके बाद उसके साथ दुष्कर्म भी किया। इसके साथ ही दोनों दोषियों ने पीड़िता से सोने की चेन और एक हजार रुपये भी लूट लिए थे।
इस मामले में आंदोलनकारियों ने आवाज उठाई और उत्तराखंड संघर्ष समिति हाईकोर्ट पहुंची। जिसके बाद सीबीआई ने 25 जनवरी 1995 को दोनों पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे। अब तीस साल बाद कोर्ट ने इस मामले में सजा सुनाई है। बता दें कि सिपाही मिलाप सिंह मूल रूप से एटा के निधौली कलां थाना क्षेत्र के होरची गांव का रहने वाला है। जबकि दूसरा आरोपी सिपाही वीरेंद्र प्रताप मूल रूप सिद्धार्थनगर के थाना पथरा बाजार के गांव गौरी का रहने वाला है।