चमोली: आज आपको उत्तराखंड के चमोली जिले के एक ऐसे हिस्से से रू-ब-रू कराते हैं, जिससे शायद ही आप परिचित होंगे। ये कोई आम जगह नहीं है। इसका पर्यटन के लिहाज से तो महत्व है ही। धार्मिक और पौराणिक महत्व भी है। 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थिति वसुधारा, ऐसी ही जगह है। जहां जाने के बाद मन शांत हो जाता है। 150 मीटर ऊंचाई से गिर रही वसुधारा को देखते रहने का मन करता है। खूबसूरती इतनी कि यहां आने के बाद वापस लौटन का मन ही नहीं करता है।
ऐसे पहुंचे वसुधारा
वसुधारा पहुंचना मुश्किल तो है, लेकिन बहुत कठिन नहीं है। यहां पहुंचने के लिए बदरीनाथ पहुंचने के बाद तीन किलोमीटर का सफर देश के आखिरी गांवा मांणा तक सड़क से पहुंचा जा सकता है। इसके बाद करीब इतनी ही दूरी पैदल ट्रेकिंग के जरिये पूरी की जा सकती है। अब तक इस साल 3 हजार लोग पहुंच चुके हैं। सफर थकाने वाला जरूर है, लेकिन वसुधारा पहुंचने के बाद थकान गायब हो जाती है। पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए माणा गांव से घोड़ा-खच्चर और डंडी-कंडी की सुविधा भी उपलब्ध है।
स्कंद पुराण में वर्णन
वसुधारा की महत्ता स्कंद पुराण में बताई गई है। बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल बताते हैं कि स्कंद पुराण के वैष्णवखंड बद्रिकाश्रम माहात्म्य में इसकी महत्ता बताई गई है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि इस वसुधारा का एक छींटा पड़ने से ही समस्त पाप और कष्ट कट जाते हैं।
अष्ट वसु की तपस्या
उन्होंने बताया कि वसुधारा को लेकर एक मान्यता यह भी है कि यहां अष्ट वसु अयज, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभाष ने कठोर तपस्या की थी। इसलिए इसका नाम वसुधारा पड़ा था। अगर आप भी जाना चाहते हैं, तो आज चले आइए।
पांडवों से जुड़ी है वसुधारा
इस धारा को बेहद पवित्र माना जाता है। जब भी आसपास के गांवों में देवरा होती है। देवी-देवता और यात्रा में शामिल लोग वसुधारा में स्नान करने पहुंचते हैं। कहा जाता है कि राजपाट से विरक्त होकर पांडव द्रोपदी के साथ इसी रास्ते से होते हुए स्वर्ग तक पहुंचे थे। पुराणों के अनुसार वसुधारा में ही सहदेव ने अपने प्राण त्यागे थे और अर्जुन ने अपना धनुष गांडीव त्यागा दिया था।