उत्तरकाशी(बड़कोट) : क्या किसी की जान की कीमत इतनी सस्ती है कि उसकी मौत को रफा-दफा कर दिया गया…मामला सिर्फ एक मौत का नहीं बल्की दो-दो मौतों का है. नेपाल से मजदूरी करने आए दो मजदूरों की बिलजी विभाग के काम के दौरान मौत हो जाती है. दोनों की मौत का बकायदा पंचनामा भर कर परिजनों को सौंपा जाता है लेकिन पूरे मामले न तो ऊर्जा निगम की और न ही ठेकेदार की जिम्मेदारी तय की गई. पुलिस ने भी मामले को रफा-दफा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
आइये अब आपको बताते हैं कि घटना क्या था और कैसे दो मजदूरों की मौत हुई औऱ उनकी मौत को उनकी जिंदगी के साथ जिंदा दफन कर दिया गया. एक इंसान के पीछे उसके घर परिवार माता-पिता, पत्नी-बच्चे होते हैं. दिन भर मजदूरी कर मजदूर परिवार को पेट पालता है लेकिन एक विभाग की गलती से उसकी जिंदगी चली जाती है. कार्रवाई करने की बजाए पुलिस भी मामले को रफा-दफा कर देती है मानो जिंदगी की कोई कीमत न हो..
मामले को ऐसे निपटाया जाता है जैसे प्राकृतिक आपदा में मजदूरों की मौत हुई हो
जी हां मामला उत्तरकाशी बड़कोट के पास स्थित खरादी गांव से एक किलोमीटर आगे यमनोत्री मार्ग का है. जहां बिजली का काम ठेकेदार बालकृष्ण बेलवाल के अंडर कराया जाता है. काम के दौरान दो मजदूरों की बिजली का खंबा गिर जाने से मौत हो जाती है और उन दोनों मजदूरों की मौत की कानों कान किसी को खबर नहीं होती. मामले को ऐसे निपटाया जाता है जैसे कोई आपदा आई हो और उसमे मजदूरों की मौत हुई हो. लेकिन इन दो मजदूरों की मौत का जिम्मेदार साफ तौर पर बिजली विभाग और ठेकेदार है. क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनी कि मामले की निष्पक्ष जांच की जाए औऱ परिवार को इसका हर्जाना दिया जाए.
बिजली का खंबा लगाने के दौरान हुई थी मजदूरों की मौत
खरादी गांव से एक किलोमीटर आगे यमनोत्री मार्ग पर सड़क का काम प्रगति पर है और वहां बिजली का खंबा गिर जाता है जिसे खड़ा करने औऱ बिजली का तार लगाने के लिए नेपाली मजदूर बिजली के खंबे पर चढ़ते हैं लेकिन बिजली का खंबा गिर जाने के कारण दो नेपाल मूल के मजदूरों की मौत हो जाती है. एक मजदूर की मौके पर ही मौत हो जाती है जबकि एक को इलाज के लिए चंड़ीगढ़ रेफर किया जाता है जहा इलाज के दौरान उसकी मौत हो जाती है. बकायदा दोनों का पंचायत नामा किया जाता है और परिजनों को शव सौंप दिया जाता है.
मौत का जिम्मेदार कौन?
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि दोनों की मौत का जिम्मेदार कौन है? ठेकेदार, ऊर्जा विभाग या पुलिस? बड़ा सवाल ये भी है कि इस मामले में कोई ऑफिशियली कार्रवाई क्यों नहीं की गई? सवाल ये भी है कि शासन-प्रशासन ने इस मामले पर क्या कार्रवाई की और इसमे कोई जांच हुई या नहीं? क्यों सू्त्रों से जानकारी मिली है कि मिली भगत से इस मामले को निपटाया गया है.