देहरादून (मनीष डंगवाल) : उत्तराखंड राज्य। पहाड़ी राज्य बनाने की मांग उठी। उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन का युद्ध पहाड़ी राज्य की अवधारण के साथ लड़ा और जीता गया। कुर्बानियों की नींव पर ये राज्य बनाया गया। लोगों ने सपने संजोय थे कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद रोजगार मिलेगा। पहाड़ में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। पहाड़ और पहाड़ी दोनों समृद्ध होंगे। हुआ क्या ? वो सब सामने है। पहाड़ बर्बाद हो चुका है। पहाड़ी भी बर्बादी की आखिरी दहलीज पर खड़ा है। पलायन ने ऐसे पंख लगाए कि पहाड़ी मैदानी हो गये। पलायन के इन्हीं पंखों को काटने के लिए पलायन रोकने की कवायदें लगातार हो रही हैं, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। पलायन रोकने की उम्मीदें भी डूबने लगी थी, लेकिन इन दिनों उम्मीद फिर से जगने लगी है। वो उम्मीद है राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी की मुहिम ‘‘अपना वोट, अपने गांव…’’।
बलूनी की मुहीम को समर्थन
उत्तराखंड़ में शोशल मीडिया पर इन दिनों अपना वोट, अपने गांव मुहिम जोर पकड़ रही है। राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की शुरू की गई इस मुहिम की हर कोई तारीफ कर रहा है। दरअसल, अनिल बलूनी का वोट कोटद्वार में था, जबकि उनका मूल गांव नकोट है। लेकिन, अनिल बलूनी ने अपना वोट, अपने गांव में ही देने की पहल की। उन्होंने पौड़ी डीएम को पत्र लिखकर अपना नाम कोटद्वार से कटवाकर मूल गांव नकोट की वोटिंग लिस्ट में दर्ज करने को कहा। बलूनी की इस पहल को रिवर्स पलायन है के रूप में देखा जा रहा है, ताकि जो लोग उत्तराखंड से पलायन कर चुके हंै। वो वोट देने के बहाने अपने गांव तक पहुंचें।
नेताओं के लिए उदाहरण
पलायन कर चुके उन नेताओं के लिए भी बलूनी ने एक आदर्श पेश किया है, जो पहाड़ की सियासत तो करते हैं, लेकिन सालों पहले पहाड़ छोड़ कर मैदान में ही अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं। उत्तराखंड में ऐसे की नेता हैं जो पहाड़ की बात तो करते हैं, लेकिन अपने गांव की बात तक नहीं करते। पहाड़ के विकास की बात तो करते हैं, लेकिन गांवों से नफरत करते हैं। इस लिहाज से कह सकते हंै कि बलूनी ने जो पहल की वह अगर वास्तव में एक मुहिम बन जाये तो वोट के दिन कम से कम एक दिन तो पहाड़ नेताओं के साथ लोक तंत्र मंे विश्वास रखने वालों से गुलजार नजर आएगा। मुहिम का ही असर है अनिल बलूनी के साथ कई नेताओं ने फेस बुक प्रोफाइल फोट अपना वोट, अपने गांव की मुहिम के लिए बने पोस्टर की लगाई है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मुहिम को शुरू करने के लिए अनिल बलूनी को बधाई दी और मुहिम की सरहाना भी की।
आंदोलनकारी भी मुरीद
अपना वोट अपने पैतृक गांव देने की मुहिम उत्तराखंड में जोर पकड़ने लगी है। राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी से जुड़े करीबी लोगों की मानें तो इस मुहिम से उत्तराखंड के उन बड़ी हस्तियों को भी जोड़ा जाएगा जो उत्तराखंड से बाहर हैं और वोट डालने अपने प्रदेश नहीं आते। मुहिम में शामिल होने के बाद जो लोग मुहिम से जुड़ेंगे वह वोट डालने भी आएंगे और अन्य लोगों से भी इस मुहिम से जुड़ने की अपील करेंगे। खास बात ये है कि राज्य आंदोलनकारी भी इस मुहिम की सरहाना कर रहे हैं। राज्य आंदोलनकारी प्रदीपन कुकरेती ने कहा कि यह बेहतरीन प्रयास है। इस तरह के प्रयासों से पहाड़ को फिर से गुलजार करने का सपना देखा जा सकता है।
2026 में परिसीमन पर चुनौती
उत्तराखंड में हो रहे पलायन पर काम कर रहे पलायन एक चिंतन अभियान के संयोजक रतन सिंह असवाल का कहना है मुहिम तो स्वागत योग्य है, लेकिन वह अनिल बलूनी से कहना चाहते हैं कि जितनी गम्भीर समस्या 2026 के बाद उत्तराखंड में होने वाली उस समस्या का भी राज्यसभा सांसद बलूनी को चिंतन करना चाहिए। उनका कहना है कि 2026 में फिर से विधानसभाओं का परिसीमन किया जाएगा। जिसमें जनसंख्या को आधार बनाया जाता है। अगर ऐसा हुआ तो प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों की 8 से 10 विधानसभाएं कम हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि बलूनी को प्रधानमंत्री से उत्तराखंड के लिए परिसीमन में विशेष प्रवधान कराना चाहिए। उसमें यह होना चाहिए कि उत्तराखंड का परिसीमन जनसंख्या के आधार पर नहीं, बल्कि क्षेत्रफल के आधार पर हो। अगर वो ऐसा करने में सफल रहे, तो उत्तराखंड की जनता उनको कभी नहीं भूलेगी और एक हीरो बनकर उभरेंगे।
बलूनी से बड़ी उम्मीद
बेशक अनिल बलूनी की अपना वोट, अपने गांव की मुहिम सराहनीय है, लेकिन वोट की चिंता के साथ अनिल बलूनी ने अगर केंद्र सरकार से विधानसभा के परिसीमन के लिए उत्तराखंड में जनसंख्या की बजाय क्षेत्रफल को महत्व दिए जाने के प्रावधान को मंजूरी दिला दी तो बलूनी हमेशा हमेशा लिए पहाड़ की चिंता को दूर करने के लिए याद किये जाएंगे। बलूनी की मानें तो उनकी मुहिम भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। मुहिम का लक्ष्य ही यह है कि उत्तराखंड से बाहर रह रहे लोगों का नाम उनके गांव में हो।