दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस से दहशत का माहौल है। भारत में अब तक कोरोना से 437 मौतें हो चुकी है। वहीं सरकार कोरोना से लड़ने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। इस महामारी से लड़ने में भारत बाकी देशों से काफी आगे हैं। सरकार के हर फैसले के साथ देश की जनता खड़ी है, लेकिन कुछ फैसले ऐसे भी हैं जिन्हें अगर बदलने की कोशिश की जाए तो न सिर्फ इतिहास बदलेगा, बल्कि परंपराएं भी बदल जाएंगी और अगर यह परंपराएं बदलती है, तो किसी बड़ी अनहोनी को दस्तक देने जैसा होगा।
सरकार कर रही डिजिटल पूजा और दर्शन कराने को लेकर विचार विमर्श
हां हम बात कर रहे हैं लॉक डाउन के बीच उत्तराखंड में खुल रहे चार धामों के कपाट की। अप्रैल के आखिरी हफ्ते में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने हैं। 6 महीने तक चलने वाली चार धाम यात्रा के लिए गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट 26 अप्रैल, केदारनाथ धाम के कपाट 29 अप्रैल और बद्रीनाथ धाम के कपाट 30 अप्रैल को खुलने हैं। इस बीच कोरोना जैसी महामारी को देखते हुए डिजिटल पूजा और दर्शन कराने को लेकर सरकार इस मुद्दे पर विचार विमर्श कर रही है। लेकिन स्थानीय लोग और पुजारी ऑनलाइन पूजा करने का विरोध कर रहे हैं।इतना ही नहीं बिना रावल जी के ही कपाट खोलने की भी तैयारी में जुटे हैं।
महाराष्ट्र और केरल में फंसे रावल जी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार केदारनाथ के रावल जी महाराष्ट्र में फंसे हुए हैं और बद्रीनाथ के रावल जी केरल में फंसे हुये हैं। और अगर बिना रावल जी के कपाट खोले जाते है तो इतिहास पलट जाएगा औऱ लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा होगा।
कपाट खुलने के समय रावल जी का होना जरूरी माना जाता है
परंपरा के अनुसार कपाट खुलने के समय रावल जी का होना जरूरी माना जाता है। लेकिन इस महामारी के बीच सरकार बिना रावल जी के ही ऑनलाइन पूजा करने की तैयारी में जुटी है। जिसके बाद बड़ा सवाल यह उठता है कि जब कपाट खोलने की तिथि और समय पहले से ही निर्धारित हो चुका था तो रावल जी को पहले से ही राज्य में लाने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई।
क्या 200 साल पुरानी परंपरा को बदलने की कोशिश की जा रही है?
अब सवाल यह भी उठते हैं कि क्या आखिर 200 साल पुरानी परंपरा को बदलने की कोशिश क्यों की जा रही है? क्या हमारी सरकार के पास इतनी भी व्यवस्था नहीं है कि वह सालों पुरानी परंपराओं को बचाने की कोशिश कर सके ताकि लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। कहा जा रहा है कि रावल जी अगर यहां आते हैं तो उन्हें 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किया जाएगा…सवाल ये उठ रहा है कि तो सरकार ने पहले ही उन्हें यहां क्यों नहीं बुलाया। धर्म,आस्था ओर परंपरा के साथ आखिर खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है। आखिर क्यों परंपराओं को बदलने की कोशिश की जा रही है।