काशीपुर : भरपूर हंसी खुशी परिवार और अपना छोटा सा आशियाना सभी का सपना होता है। ऐसा ही सपना था नरेश पाल सिंह का जिनकी छवि पुलिस विभाग में, जहां-जहां वो तैनात रहे वहां काफी अच्छी थी। उनका भरपूर खुशी वाला परिवार था। दो बेटियां दो जुड़वा बेटे, पत्नी और मां के साथ काफी खुशी के पल बिताए. दारोगा की खुशी फेसबुक की फोटोस से साफ झलक रही हैं। बस सपना था अपने घऱ का।
ये सपना नए साल में पूरा होने ही वाला था लेकिन उस सपने को उस पल को जीने के लिए खुशी मनाने के लिए वो इस दुनिया में नहीं रहे। बीते दिन 29 दिसंबर को उन्होंने आखिरी सांसली।
नए साल में नए घर की खुशिया मनाने का सपना अधूरा रह गया
बता दें कि टीपी नगर चौकी इंचार्ज मूलत: मुरादाबाद के रहने वाले थे। एसआइ नरेश पाल यादव का परिवार पिछले कई सालों से काशीपुर कोतवाली परिसर में रह रहे थे। उनकी स्वच्छ छवि और मृदुल व्यवहार के चलते वो सबके चहेते थे। पुलिस अधिकारी भी उनसे खासे प्रभावित थे। बस उनका घर का सपना नए साल को पूरा होने वाला था कि उससे पहले पूरे परिवार में मातम छा गया, नए साल में नए घर की खुशिया मनाने का सपना अधूरा रह गया।
मिली जानकारी के अनुसार दारोगा नरेश ने अब तक काशीपुर की कटोराताल चौकी, पैगा चौकी, सूर्या चौकी, जसपुर की पतरामपुर चौकी, चौकी बाजार खटीमा, चौकी सिडकुल रूद्रपुर, थानाध्यक्ष नानकमता, थानाध्यक्ष झनकईया चौकी के प्रभारी पद पर कार्य किया।
दो बेटी दो बेटे, बेटी कर रही सिविल सर्विसेज औऱ एलएलबी की तैयारी
मिली जानकारी के अनुसार दारोगा नरेश के चार बच्चों में बड़ी बेटी दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही है, छोटी बेटी नोएडा में एलएलबी कर रही है। उनके दो जुड़वा बेटे कृष्ण और कन्हैया हैं। जो काशीपुर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में कक्षा 11 के छात्र हैं।
नए साल में नए फ्लैट में शिफ्ट होने वाले थे
बता दें कि कई सालों से काशीपुर कोतवाली परिसर में रह रहे दारोगा ने कुंडेश्वरी रोड स्थित एक कॉलोनी में फ्लैट खरीदा था। जो नए साल में नए फ्लैट में शिफ्ट होने वाले थे। नरेश के परिजनों ने नए घर में आधा सामान शिफ्ट भी कर दिया लेकिन उससे पहले ही उनकी खुशियां मातम में बदल गई।
खटीमा : उपनिरीक्षक नरेशपाल सिंह खटीमा बाजार चौकी पर भी रहे। कई वर्षों से बदहाल चौकी का सुंदरीकरण खुद निजी खर्चे से कराया था। 2013 से 2015 तक रहने के दौरान जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगवाए। इसके बाद वह झनकइया थाने के थानाध्यक्ष रहे। वह जिस थाने अथवा चौकी पर तैनात रहते थे, अपने स्तर से थाने-चौकियों का सुंदरीकरण कराना उनकी प्राथमिकता रहती थी।