देहरादून(मनीष डंगवाल)- उत्तराखंड में बेशक शिक्षक दिवस धूमधाम से मनाया गया हो लेकिन उत्तराखंड के शिक्षकों की योग्यता पर इस साल एक बड़ा सवाल भी खड़ा हो गया है। राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है जब शिक्षक दिवस के मौके पर उत्तराखंड के किसी शिक्षक को राष्ट्रपति के हाथों अवार्ड न मिला हो।
उत्तराखंड को मिली इस मायूसी पर प्राथमिक शिक्षक संघ के महामंत्री दिग्विजय सिंह चौहान ने कहा है कि उत्तराखंड में योग्य शिक्षकों की कमी नहीं है लेकिन चयन के मानकों में बदलाव के चलते ऐसा हुआ कि उत्तराखंड का कोई भी शिक्षक राष्ट्रपति पुरुस्कार के लिए चयनित नहीं हो पाया। दिग्विजय चौहान ने इस उत्तराखंड का दुर्भाग्य करार दिया है।
राज्यपाल और शिक्षा मंत्री को जानकारी नहीं
यूं तो शिक्षक जीवन में रहकर हर किसी शिक्षक का सपना होता है कि अपनी बेहतर सेवाओं के लिए वह राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित हो लेकिन उत्तराखंड के शिक्षकों को इस बार निराशा हाथ लगी है। आने वाले सालों में भी यह एक सवाल बनकर रह गया है कि क्या राष्ट्रपति के हाथों सम्मान पाने का उत्तराखंड के शिक्षकों का सपना महज सपना ही बनकर रह जाएगा?
वहीं देहरादून स्थित राजभवन में आयोजित गवर्नर्स अवार्ड सेरेमनी में उस समय अजीब स्थिती उत्पन्न हो गई जब राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने मंच से कहा कि प्रधानमंत्री के हाथों उत्तराखंड के दो शिक्षकों को आज सम्मान मिल रहा है। वहां मौजूद शिक्षकों में इस बात को लेकर चर्चा होने लगी कि राज्यपाल को ये गलत जानकारी किसने दी? क्योंकि शिक्षक दिवस पर प्रधानमंत्री नहीं बल्कि राष्ट्रपति शिक्षकों को पुरुस्कार देते हैं। वहीं इस बार उत्तराखंड के किसी शिक्षक को पुरुस्कार मिल भी नहीं रहा है। जाहिर है कि राज्यपाल को गलत जानकारी दी गई।
शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे को भी नहीं पता
वहीं कार्यक्रम के बाद जब शिक्षा मंत्री से इस निराशा के बारे में सवाल किया गया तो शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डेय ने भी गलत जानकारी को ही दोहरा दिया। अरविंद पांडेय ने दावा किया कि इस बार उत्तराखंड के तीन शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरुस्कार दिया जा रहा है। हालांकि ये जानकारी भी गलत है। ऐसे में सवाल फिर वही है कि शिक्षा मंत्री को किसने गलत जानकारी दे दी।
गुरू जी क्यों नहीं हुए सेलेक्ट
पिछले साल तक राष्ट्रपति पुरुस्कार में राज्यों का कोटा होता था। इसी कोटे के मुताबिक राज्यों को पुरुस्कार दिए जाते थे। लिहाजा पिछले साल तक उत्तराखंड से अमूमन सात शिक्षकों को पुरुस्कार मिलना तय था लेकिन इस साल कोटा खत्म होने होने के बाद पूरे देश से 45 शिक्षकों को ही समान मिलना था। पहले पूरे देश 300 से ज्यादा शिक्षकों को सम्मान मिलता था। इस बार कोटा खत्म होने के साथ ही अवार्ड पाने के लिए शिक्षकों को कड़े नियमों से गुजरना पड़ा। राज्यों के द्वारा जो नाम चयनित करके भेजे गए उनका राष्ट्रीय स्तर पर बाकायदा साक्षात्कार हुआ जिसमें उत्तराखंड के शिक्षक सफल नहीं हो पाए। चर्चाएं हैं कि उत्तराखंड के शिक्षक अंग्रेजी में मात खा गए।
खबर उत्तराखंड ने अवाॅर्ड न मिलने को लेकर किया शिक्षकों से सवाल
ये भी उत्तराखंड कि लिए शिक्षक दिवस के दिन निराशा करने वाली ही बात रही कि उत्तराखंड के किसी शिक्षक को ये राष्ट्रपति के हाथों अवाॅर्ड नहीं मिल पाया. उपर से जिस तरह से अवाॅर्ड न मिलने के लिए गलत जानकरी दी गई कि शिक्षकों को राष्ट्रपति के हाथों अवाॅर्ड मिला रहा है…उसका तो कहना कि क्या….लेकिन शिक्षा विभाग के जितने भी अधिकारियों से खबर उत्तराखंड ने अवाॅर्ड न मिलने को लेकर सवाल किया सबने निराशा व्यक्त की। अधिकारियों की मानें तो कड़े मानकों के चलते अब राज्य के शिक्षकों को पहले से अधिक मेहनत करनी पड़ेगी।