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देहरादून: उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदलने के साथ ही चारों धामों की तीर्थ पुरोहितों को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के बयान से एक आस देवस्थानम बोर्ड में संशोधन को लेकर जग गई थी। लेकिन, दो महीने बीत जाने के बाद भी इस पर कोई पहल न होने और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के बयान से एक बार फिर चारधाम देवस्थान बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहितों का आक्रोश चरम पर पहुंच गया है। लेकिन, अब इस पर सियासत भी होने लगी है। भाजपा और कांग्रेस सियासी फायदा और नुकसान भी तलाशने लगे हैं।
पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के चारधाम देवस्थानम प्रंबधन बोर्ड पर कोई पुनर्विचार न किए जाने के बयान के बाद बाद तीर्थ पुरोहितों का आक्रोश एक बार फिर चारधाम देवस्थान प्रबंधन बोर्ड को लेकर सातवंे आसमान पर है। तीर्थ पुरोहित एक बार फिर बोर्ड को भंग करने की मांग पर अड़ गए हैं। कुछ तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलकर एक बार फिर बोर्ड को भंग करने की मांग की है। साथ ही सभी तीर्थ पुरोहितों ने कह दिया है कि बोर्ड भंग नहीं होता है तो इसको लेकर विरोध प्रदर्शन की किया जाएगा।
देवस्थानम बोर्ड को लेकर जहां तीर्थ पुरोहित विरोध दर्ज कर रहे हंै। वहीं, आगे और व्यापक रूप में भी तीर्थ पुरोहित प्रदर्शन करने की बात कर रहे हैं। इस मामले में कांग्रेस तीर्थ पुरोतिों के साथ खड़ी नजर आ रही है। कांग्रेस ने कहा कि 2022 में कांग्रेस की सरकार आते ही बोर्ड को भंग कर दिया जाएगा। जिस पर शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल का कहना है कि बोर्ड पर पुनर्विचार करने को लेकर मुख्यमंत्री ने स्पष्ट वक्तय दिया है, जहां तक कांग्रेस की बात है। बोर्ड को बने हुए 2 साल का समय हो गया है।
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कांग्रेस ने कहीं विरोध की बात नहीं कही, लेकिन महाराज के बयान के बाद तीर्थ पुरोहितों के विरोध के बाद कांग्रेस की आवाज निकली है। इसलिए कांग्रेस ये सपने न देखे कि उनकी सरकार आने के बाद बोर्ड भंग होगा। क्योंकि 2022 में कांग्रेस नहीं भाजपा ही सत्ता में वापसी कर रही है। चार धाम देवस्थानम प्रंबधन बोर्ड को लेकर उत्तराखंड की तीरथ सरकार असमंजस में है कि आखिर तीर्थ पुरोहितों के विरोध को देखते हुए बोर्ड में संसोधन करे या बोर्ड को रद्द करे, लेकिल ऐसे में देखना यह होगा कि आखिर सरकार इस मामले में क्या फैसला लेती है। क्योंकि चुनाव में जाने से पहले सरकार को इस पर निर्णय लेना ही होगा।