देहरादून: उत्तराखंड राज्य आंदोलन की देन है। राज्य के लिए लंबा आंदोलन चला। मुज्जफर नगर, रामपुर तिराहा कांड, मसूरी, खटीमा समेत कई ऐसे कांड हुए, जिनमें 42 लोगों ने अपनी कुर्बानी दी। राज्य की मां-बेटियों के साथ बर्बरता की गई। राज्य आंदोलन के पहले दिन से ही गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग रही। राज्य बनने के 20 सालों तक राज्य आंदोलनकारी गैरसैंण के लिए इंतजार करते रहे, लेकिन इतना लंबा वक्त गुजरने के बाद भी कोई मुख्यमंत्री ऐसा फैसला नहीं ले सकता, जो आंदोलनकारियों की भावनाओं के अनुरूप हो।
जनता से किया वादा निभाया
त्रिवेंद्र सिंह रावत के सीएम बनने के बाद से ही इस बात की उम्मीद और चर्चाएं थी कि वो जरूर राजधानी को लेकर कोई फैसला लेंगे। भाजपा ने चुनाव में जनता से वादा भी किया था। उस वादे ने भी उम्मीद जगाई थी कि त्रिवेंद्र सरकार जनता से किया वादा निभाएगी। हुआ भी ऐसा ही। त्रिवेंद्र रावत ने गैरसैंण बजट सत्र में राज्य आंदोलनकारी और राज्य की जनता की भावनाओं, उम्मीदों और आकंक्षाओं को पूरा किया। उन्होंने बजट सत्र के अंतिम दिन ऐसा फैसला लिया, जिसकी लोग उम्मीद तो नहीं कर रहे थे, लेकिन चाहते सभी थे कि राजधानी पर सरकार कोई बड़ा फैसला ले।
गैरसैंण के पर विकास
त्रिवेंद्र ने वो साहस दिखाया, जिसे कोई नहीं दिखा पाया। राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित होने के बाद सरकार का फोकस अब गैरसैंण के विकास पर है। गैरसैंण तक सड़क के सीएम त्रिवेंद्र पहले ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को प्रस्ताव दे चुके हैं। मिनी सचिवालय बनाने की दिशा में काम शुरू हो चुका है। त्रिवेंद्र सरकार ने जो संकल्प लिया। सरकार अपने संकल्प को पूरा करने की ओर बढ़ रही है।
उत्तराखंडियों ने सराहना की
गैरसैंण को राजधानी बनाने के त्रिवेंद्र कैबिनेट के फैसले की उत्तराखंड ही नहीं। देश-दुनिया में रह रहे उत्तराखंडियों ने सराहना की। त्रिवेंद्र रावत के फैसले पर राज्य आंदोलनकारियों ने माना कि कम से कम कोई तो ऐसा नेता हुआ, जिसने राज्य आंदोलनकारियों और राज्य की जनता की भावनाओं को समझा और इतना बड़ा कमद उठाया। सरकार का संकल्प उत्तराखंड को प्रगति के पथ पर आगे ले जाना है। जिस तरह से त्रिवेंद्र रावत फैसले ले रहे हैं।