देहरादून : पिछले कुछ दशको में पॉलिथीन से होने वाले प्रदूषण का स्तर काफी तेजी से बढ़ा है, जो कि पूरे विश्व के लिए एक चिंताजनक विषय बन गया है, और आने वाले समय में और भी गंभीर होने वाला है। कई सारे देशो कि सरकारो द्वारा प्लास्टिक प्रदूषण के इस मुद्दे को लेकर कड़े फैसले लिये जा रहे है। प्लास्टिक प्रदूषण को नियत्रित करना मात्र सरकार की ही जिममेदारी नहीं है। वास्तव में अकेले सरकार इस विषय में कुछ कर भी नही सकती है। इस समस्या का समाधान तभी संभव है, जब हम सभी इस समस्या को लेकर जागरुक हो और इसे रोकने में अपना योगदान दे। मुमकिन जगहों पर प्लास्टिक के बढ़ते हुए उपयोग को रोककर ही इस भयावह समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
प्लास्टिक नॉन-बायोडिग्रेडेबल होता है। लकड़ी और कागज की तरह इसका दहन करके भी हम इसे समाप्त नही कर सकते।प्लास्टिक और पॉलिथीन से बना हुआ यह कचरा आसानी से घटित नहीं होता है और कई वर्षों तक ऐसा ही बना रहता है जिसके कारण इस पर मक्खी मच्छर व अन्य प्रकार के विषाणु जन्म लेते हैं व रोगों का कारण बनते हैं। इसी प्लास्टिक के कचरे को खाने से जानवरों की मृत्यु भी हो जाती है।प्लास्टिक का कचरा जब लैंडफिल या पानी के स्रोतों में पहुंच जाता है, तब यह एक गंभीर संकट बन जाता है।प्लास्टिक से बना इस कचरे का निस्तारण भी एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। कचरे को जलाने से कई सारी हानिकारक गैसे उत्पन्न होती है, जोकि पृथ्वी के वातावरण और जनजीवन के लिये काफी हानिकारक हैं। इस वजह से प्लास्टिक \पॉलिथीन वायु, जल तथा भूमि तीनो तरह के प्रदूषण को फैलाता है।
इस प्रकार वर्तमान समय की इस विशेष चुनौती के समाधान को स्वीकार करते हुए पोस्टडॉक्टरल वूमेन साइंटिस्ट (यूजीसी) व सचिव उन्नति महिला उद्यमिता एवं प्रशिक्षण समिति देहरादून, डॉ. भावना गोयल अब भारत सरकार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट (SEED) डिवीजन की परियोजना के तहत एक बायोडिग्रेडेबल व इको फ्रेंडली कपड़े को बनाने पर शोध करेंगी ।जिस से बने मूल्य वर्धित उत्पादों का उन जगहों पर प्रयोग किया जाएगा जहां पर हम रोजमर्रा के प्रयोग में पॉलिथीन और प्लास्टिक प्रयोग में लाते हैं।
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य बुनियादी अनुसंधान द्वारा वातावरण का प्रदूषण को कम कर दूरदराज और कठिन इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए स्थाई रोजगार का साधन स्थापित करके समाज के हर वर्ग का संपूर्ण विकास करना है। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य जहां पर बड़े-बड़े कल कारखाने स्थापित नहीं हो सकते,वहां इस परियोजना के अनुसंधान के लाभ से वातावरण का प्रदूषण को कम करने के साथ-साथ दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को उन्हीं के स्थानों पर रोजगार मिलेगा वह पहाड़ों से पलायन भी रुकेगा।
डॉ. भावना गोयल विगत कई वर्षों से भारत सरकार की विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन, विस्तार एवं भारत के परंपरागत रोजगारो को बढ़ावा देकर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बहुमूल्य योगदान दे रही हैं। उनके इस कार्य में मिसेज अमिता गुप्ता अपने देहरादून स्थित सुविधा सुपरमार्केट में ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए गए मूल्य वर्धित उत्पादों को मार्केटिंग प्रदान कर भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन व ग्रामीण महिलाओं के विकास में अपना सराहनीय योगदान प्रदान कर रही हैं। आगे भी पर्यावरण सुरक्षा व महिलाओं के विकास हेतु उनके द्वारा बनाए गए मूल्य वर्धित उत्पादों को मार्केटिंग प्रदान करने में अपना योगदान देने के लिए आश्वासन प्रदान किया है