कुमाऊं में मांगलिक कार्य पर घरों को प्राकृतिक रंगो जैसे गेरू एवं पिसे हुए चावल के घोल से सजाने की परंपरा आज भी जीवंत है। बदलते समय के साथ बाजार के मिलावटी रंगों का भी प्रचलन शुरू हो गया है। लेकिन महालक्ष्मी पूजा पर आज भी गेरू व चावल के घोल से मां लक्ष्मी के पैर बनाने की परंपरा अनवरत चल रही है। यह लोगों को आंखों में दिक्कत व एलर्जी से भी बचाता है।
लोक कला की इस स्थानीय शैली को कहा जाता है ऐपण
लोक कला की इस स्थानीय शैली को ऐपण कहा जाता है। ऐपण का अर्थ लीपने से होता है। लीप शब्द का अर्थ अंगुलियों से रंग लगाना है। दीपावली के अवसर पर कुमाऊं के घर-घर ऐपण से सज जाते हैं। घरों को आंगन से घर के मंदिर तक ऐपण से सजाया जाता है। दीपावली में बनाए जाने वाले ऐपण में मां लक्ष्मी के पैर घर के बाहर से अन्दर की ओर को गेरू के धरातल पर विस्वार (चावल का पिसा घोल) से बनाए जाते हैं। दो पैरों के बीच के खाली स्थान पर गोल आकृति बनाई जाती है। जो धन का प्रतीक माना जाता है।
पूजा कक्ष में भी लक्ष्मी की चौकी बनाई जाती है। माना जाता है कि इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। घर परिवार को धनधान्य से पूर्ण करती हैं। इनके साथ ही लहरों, फूल मालाओं, सितारों, बेल-बूटों व स्वास्तिक चिह्न भी चावल के घोल से ही बनाए जाते हैं। अलग-अलग प्रकार के ऐपण बनाते समय मंत्रों का भी उच्चारण करने की परंपरा है। ऐपण बनाते समय कई त्योहारों पर महिलाएं मांगिलक गीतों का भी गायन करती हैं।
गेरू और विस्वार से बनाने की थी परंपरा
त्योहारों के नजदीक आते ही महिलाएं गेरू व विस्वार से घर के फर्श पर, दीवारों, प्रवेश द्वार, देहरी, पूजा कक्ष और विशेष रूप से देवी-देवताओं के मंदिर को सजाया जाता है। फर्श पर कुछ कर्मकांडों के आकड़ों के साथ सजाया जाता है। दीपावली के अवसर पर बनने वाली लक्ष्मी की पदावलियां घर, आंगन, देहरी, मंदिर, फर्श, सीढ़ियों, दरवाजों एवं कमरों में पूजा कक्ष में बनाए जाते हैं। इस बार दिवाली शुरू होने से करीब तीन दिन पहले ही महिलाएं ऐपण से घरों को सजाने में जुटी हुई हैं।
अब पक्के रंगों से बनने लगे ऐपण
पारंपरिक गेरू एवं बिस्वार से बनाए जाने वाले ऐपण की जगह अब सिंथेटिक रंगो से भी ऐपण बनने लगे हैं। लोगों का मानना है कि ऐपण कई दिनों तक घरों को सजाने का काम करते हैं। उनका मानना है कि इन रंगों के प्रयोग से बनाए गए ऐपण केवल घर को सजाने मात्र का काम करते हैं। त्योहारों पर पारंपरिक ऐपण जो गेरू और बिस्वार से बनाया जाता है, उसे घर के मुख्य स्थानों पर अवश्य बनाते हैं, जो शुभ माना जाता है। आधुनिकता के दौर में अब धीरे-धीरे गेरू और बिस्वार के स्थान पर सिंथेटिक रंगो का प्रचलन बढ़ रहा है।