देहरादून। इन लोकसभा चुनावों में उत्तराखंड को त्रिवेंद्र सिंह रावत के रूप में एक बड़ा सियासी जादूगर मिल गया। एक ऐसा जादूगर जो राजनीति के तमाम मिथक अब अपनी रणनीतिक कलाबाजी से तोड़ता नजर आ रहा है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने साबित कर दिया कि अफसरशाही के स्वछंद विचरण के लिए कुख्यात राज्य में भी सरकार का मुखिया पाक साफ हो तो भ्रष्टाचार का कलंक नहीं लग सकता है। यही नहीं राज्य की जनता का दिल न सिर्फ ऐसे कामों से जीता जा सकता है बल्कि उनका जनादेश भी पाया जा सकता है।
उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत के बाद से त्रिवेंद्र सरकार के पास सबसे बड़ी जिम्मेदारी लोकसभा चुनावों में स्थापित मिथक को तोड़ने की थी। उस मिथक को, जिसमें राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी लोकसभा चुनावों में हार जाती है। ऐसा तभी हो सकता था जब राज्य की सरकार न सिर्फ विकास कार्यों को तेजी से करे बल्कि उसपर करप्शन का कोई कलंक भी न लगे। त्रिवेंद्र रावत ने ये कर दिखाया।
पूरे देश में जब आयुष्मान योजना को लागू करने की शुरुआती तैयारियों चल रहीं थीं उससे पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पीएम नरेंद्र मोदी की इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरे राज्य में सफलता पूर्वक लागू कर दिया है। तकरीबन ढाई साल के कार्यकाल के दौरान त्रिवेंद्र सरकार ने करप्शन पर जीरो टालरेंस की जो नीति अपनाई उसने बीजेपी के पक्ष में लहर बनाने में मदद की।
त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद भी चुनाव प्रचार में पूरे जोश के साथ मौजूद रहे। अलग अलग इलाकों में सौ से अधिक रैलियां और सभाएं कीं। संगठन के साथ खुद भी चुनावी रणनीति बनाने में लगे रहे। इसी का नतीजा रहा कि उत्तराखंड में कई चुनावी मिथक टूट गए। सरकार और संगठन की आपसी जुगलबंदी ने बीजेपी के सिर जीत का सेहरा बांध दिया। ऐसे में निश्चित तौर पर बीजेपी को एक नया सियासी जादूगर मिला है।