नैनीताल : प्रदेश भर के साथ देशभर में युवा बेरोजगारी का दंस झेल रहे हैं. हर तरफ सरकारी नौकरी की हाय-हाय मची हुई है. वहीं कर्तव्य कर्मा संस्था ने एक अच्छी पहल छेड़ी है जिससे उत्तराखंड के लोगों को, महिलाओं को रोजगार मिलेगा और खाली हो रहे गांव शायद आबाद हो पाएंगेे.
कर्तव्य कर्मा संस्था की अच्छी पहल, महिलाओं को बना रहा स्वावलंबी
जी हां आपको बता दें कि कर्तव्य कर्मा संस्था उत्तराखंड के गांव में कुछ परिवारों के साथ काम कर रही है और कई परिवारों को महिलाओं को रोजगार दे रही है साथ ही कम खर्च में अच्छी चीजों को लोगों के सामने बाजारों में उपलब्ध करा रही है इसकी ताऱीफ तो बॉलीवुड स्टार वरुण धवन ने भी की है. दरअसल नैनीताल ज़िले के एक छोटे से गांव तल्ला गेठिया में कर्तव्य कर्मा संस्था महिला सशक्तिकरण पर काम कर रही है और उत्तराखंड के खाली हो रहे गांवों को फिर आबाद करने की पहल छेड़ी है जिससे पलायन का दंश झेल रहा उत्तराखंड शायद आबाद हो.
संस्था से जु़ड़ी लगभग 70 महिलाएं
आपको बता दें कि 2014 में कर्तव्य कर्मा ट्रस्ट के तौर पर रजिस्टर्ड हुई ये संस्था नैनीताल के ज्योलिकोट और गेठिया में महिलाओं को स्वावलंबी बनाने औऱ अपने पैरों पर खड़ा करने का काम कर रही है। इस संस्था से अब लगभग 70 महिलाएं जुड़ी हुई हैं जो की खुद नौकरी कर अपने परिवार का पेट तो पाल ही रहे हैं साथ ही स्वावलंबी भी बने हैं.महिलाएं अपने दम पर अपनी एक अलग पहचान बना रही हैं.
यहां से शुरु हुआ सफर
इसी संस्था से जुड़े गौरव ने बताया कि पहले वो शहर में जाकर नौकरी करते थे लेकिन उन्हें उत्तराखंड के लिए, यहां के लोगों के लिए कुछ करना था जिसके बाद वो वापस उत्तराखंड लौटे. इस पहल की तैयारी 2011 से गई थी लेकिन 2014 से गौरव अपने मिशन में जुट गए। वहीं इसके बाद गौरव अग्रवाल नैनीताल ज़िले के गांव तल्ला गेठिया में रहने वाली रजनी देवी से सम्पर्क में आए जो कई वर्षों से गांव की महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण देने का काम कर रही थीं। रजनी देवी के साथ मिलकर गौरव ने गांव की कई महिलाओं से मुलाकात की और कपड़ों से गहने बनाने की पहल की शुरुआत की.
राह नहीं थी आसान, पहले खुद सीखा कपड़ों से ज्वैलरी बनाना
जूट से बैग बनाना और टोकरी बनाने का काम तो हर जगह किया जा रहा है लेकिन गौरव को कुछ अलग करना था. जिसके बाद उन्होंने कपड़े की ज्वैलरी बनाने का मन बनाया औऱ महिलाओं से ये बात साझा की. लेकिन राह आसान न थी इसके लिए पहले गौरव ने खुद कपड़ों से ज्वैलरी बनाना सीखा और गांव की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को बुलाकर सबको इसकी ट्रेनिंग दी गई।
युवक की पहल से गांव की महिलाओं को मिला रोजगार
आपको बता दें कि गौरव ने यहीं हार नहीं मानी. गौरव ने हैंडीक्राफ्ट के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर पवन बिष्ट के साथ मिलकर इस पूरे प्रोजेक्ट पर रिसर्च की और इस प्रोजेक्ट को नाम दिया गया – उद्योगिनी। और इसके बाद इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत कपड़े की ज्वैलरी बनाने का काम शुरु हो गया। गांव की महिलाओं को जोड़कर पहले एकस्वयं सहायता समूह – हिमानी का निर्माण कराया गया जिसके बाद महिलाओं का जुड़ने का सिलसिला शुरु हो गया। तीन महीने की ट्रेनिंग के बाद गांव की महिला को स्टाइपेंड मिलना शुरु होता है और फिर महिलाओं को मानदेय तय किया गया. जिससे गांव को महिलाओं को मिला रोजगार.
वरुण धवन भी कर चुके हैं काम की तारीफ
आपको बता दें कि गौरव की इस पहल की तारीफ बॉलीवुड स्टार भी कर चुके हैं. तल्ला गेठिया गांव में बन रही कपड़े की ज्वैलरी फिल्म एक्टर वरुण धवन को भी लुभा गई। जी हां आपको याद होगा कि हाल ही में वरुण धवन और अनुष्का शर्मा की फिल्म सुई-धागा रिलीज़ हुई थी जिसमें एक वरुण धवन और अनुष्का शर्मा के संघर्ष की कहानी को पर्दे पर उतारा गया था।
उत्तराखंड की नई पहचान बनती फैबरिक ज्वैलरी
वैसे तो हैंडीक्राफ्ट में उत्तराखंड की कई ऐसी कलाएं हैं जिनका नाम दुनिया भर में मश्हूर है लेकिन कर्तव्य कर्मा संस्था की मुहिम धीरे धीरे अपना रंग जमाने लगी है। आज तल्ला गेठिया गांव की पहचान फैबरिक ज्वैलरी बनाने वाले गांव के तौर पर बन चुकी है। कपड़े की ज्वैलरी हो या फिर राम झोला, कुशन कवर्स, कोस्टर्स, जूट बैग्स हों या फिर छोटे पर्स और पाउच, ये सभी प्रोडेक्ट बिल्कुल नए तरीके के हैं। नैनीताल या उसके आस-पास घूमने आने वाले लोगों को जब ये पता चलता है कि यहीं पास में तल्ला गेठिया गांव में कपड़े की खूबसूरत ज्वैलरी बनाने का काम होता है तो लोग दौड़े चले आते हैं।
कई महिलाओं के साथ औऱ मेहनत की वजह से काम आसान
आपको बता दें इस संस्था से अब लगभग 70 महिलाएं जुड़ गई है. जिसमें रजनी देवी हैंडीक्राफ्ट ट्रेनर हैं तो नेहा आर्या ज्वैलरी एक्सपर्ट के तौर पर काम कर रही है वहीं पूजा और फिरोजा ज्वैलरी ट्रेनर के तौर पर संस्था में काम कर रही हैं। हालांकि यहां कई तरह के प्रोडक्ट्स बनाए जा रहे हैं लेकिन खास प्रोडक्ट है कपड़े की ज्वैलरी जो पूरी तरह से हैंडमेड है।
धोकर दोबार पहन सकते हैं गहने
आपको बता दे कि ज्वैलरी की खास बात ये है कि ये पूरी तरह से अपसाइकल्ड और ईकोफ्रेंडली प्रोडक्ट है और इसे सावधानी से धोकर दोबारा पहना भी जा सकता है। ये काफी मनमोहक और आकर्षक हैं। सबसे खास बात ये है कि ज्वैलरी में जितने भी नए डिज़ाइन बाज़ार में आते हैं वो किसी डिज़ाइन आर्टिस्ट के द्वारा बताए हुए नहीं बल्कि महिलाओं के द्वारा ही बनाए हुए होते हैं। कहने का मतलब ये कि किसी भी ज्वैलरी के नए डिज़ाइन के बारे में पहले ये महिलाएं खुद सोचती हैं फिर उसे नई तरीके से बनाती हैं और फिर उसे सबके राय मश्विरे से फाइनल करती हैं और फिर उसी को और बेहतर बनाने का काम किया जाता है। इतनी प्रक्रियाओं से गुज़रने के बाद ये ज्वैलरी बेहद आकर्षक बनती हैऔर लोगों का दिल लूटने में देर नहीं लगाती।
देश ही नहीं विदेशी भी कर रहे पसंद
आपको बता दें कि संस्था द्वारा बनाई जा रही ज्वैलरी के सिर्फ देश ही नहीं विदेशी भी दिवाने हुए हैं. पायलट बाबा आश्रम में विदेशी सैलानियों का तांता लगा रहता है और वो गांव में इन महिलाओं के काम को देखने नीचे उतर आते हैं और फिर खरीददारी भी करते हैं। महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे इन प्रोडक्टस् को ‘पहाड़ी हाट’ नाम से बाज़ार में लॉन्च भी किया गया है। मुंबई, पुणे, फरीदाबाद और गुड़गांव में पहाड़ी हाट के कुछ प्रोडेक्ट्स लगातार जाते हैं। यही नहीं मेले और एक्ज़ीबीशन में भी पहाड़ी हाट के प्रोडेक्ट्स की काफी धूम रहती है। हाल ही में कनाडा की एक पार्टी ने भी पहाड़ी हाट से ज्वैलरी लेने का मन बनाया है जिस पर बात फिलहाल जारी है।
खरीददारी के साथ ज्वैलरी बनाने के भी शौकीन विदेशी और सैलानी
आपको बता दें कि कर्तव्य कर्मा के सेंटर द्वारा बनाई जा रही कपड़ों की ज्वैलरी को विदेशी पर्यटक ना सिर्फ खरीदते हैं बल्कि उसको बनाया कैसे जाता है इस बारे में भी जानकारी ले रहे हैं. औऱ तो औऱ कई विदेशी पर्यटक और सैलानी इसकी ट्रेनिंग भी ले गए हैं.
कर्तव्य कर्मा की नेक पहल और इसका बढ़ता दायरा
कर्तव्य कर्मा एनजीओ की मुहिम सिर्फ हैंडीक्राफ्ट तक ही सीमित नहीं है। संस्था के दो और जगह सेंटर्स हैं जहां पर एग्रो प्रोडक्ट्स और हैंड निटिड प्रोडक्ट्स पर काम चल रहा है। फिलहाल हैंडीक्राफ्ट के साथ साथ संस्था ने धीरे धीरे एग्रो प्रोडक्ट्स पर भी काम करना शुरु कर दिया है। ज्योलिकोट स्थित होर्टीकल्चर सेंटर के सामने ही एक सेंटर पर सिर्फ एग्रोप्रोडक्ट्स पर काम किया जा रहा है। यहां पर हाथ से कूटे हुए मसाले, दालें, शहद, हर्बल चाय और हर्ब्स सीज़निंग का काम किया जा रहा है।
खुद बनाती ज्वैलरी औ खुद ब्रांड एम्बेसडर
आपको मालूम है कि हर प्रोडक्ट का कोई न कोई ब्रांड एम्बेसडर होता है लेकिन यहां कि महिलाएं अपनी मेहनत के बल पर इस काम की ज्वैलरी की खुद ही ब्रांड एम्बेसडर हैं. महिलाएं कान के झुमके और गले का हार बना रही हैं और खुद ही इन्हें पहनकर ब्रैंड एम्बैसेडर बन गईं हैं। गांव सीधा-साधा जीवन जीने महिलाएं फोटो सूट जैसे कामों के लिए शर्माती है लेकिन महिलाओं के परिवार वालों की अनुमति के बाद उन्हें अपने प्रोडेक्ट का मॉडल बनाकर गांव में ही प्रोडेक्ट का फोटो शूट कराया जाता है। और महिलाएं अपने ही बनाए प्रोडेक्ट की ब्रैंड एम्बैसेडर बन गई है. गांव की महिलाओं को अब बाहर के लोग भी पहचानने लगे हैं. उनकी तारीफ करने लगे हैं. उनकी मेहनत की तारीफ करने लगे हैं उनका सम्मान करने लगे हां.