देहरादून : एसडीआरएफ में तैनात सिपाही ने गहरे और बहते पानी में रेस्क्यू के दौरान आने वाली मुश्किलों से निपटने के लिए मोटर और रिमोट चलित अंडर वाटर हुक तैयार किया है। हुक का ट्रायल सफल रहने पर कमांडेंट तृप्ति भट्ट ने सिपाही को ढाई हजार रुपये का पुरस्कार देकर सम्मानित किया और कहा कि इस हुक को अब एसडीआरएफ पेटेंट भी कराएगा।
एसडीआरएफ सिपाही विक्रम सिंह कला वर्ग से स्नातक
मूल रूप से विकासनगर निवासी एसडीआरएफ सिपाही विक्रम सिंह कला वर्ग से स्नातक है। आइटीआइ करने बाद विक्रम वर्ष 2007 में पुलिस में हुए। 31वीं वाहिनी आइआरबी में भर्ती के दौरान उनकी तैनाती डीप डाइविंग टीम में हुई। विक्रम पिछले 11 सालों से गहरे और बहते पानी में रेस्क्यू कार्य में जुटे हैं। इस दौरान विक्रम को रेस्क्यू में उपयोग होने वाले हुक यानि कांटे के पत्थर, कबाड़ या फिर हार्ड रॉक में फंसने से रेस्क्यू में दिक्कतें आने के अनुभव मिले।
कई बार तो हुक के कारण रेस्क्यू टीम की दिनभर की मेहनत अंतिम दौर में बेकार चली जाती थी। ऐसा ही अनुभव विकासनगर में पिछले जनवरी मे मोती सिंह की हत्या मामले में भी मिला। विकासनगर नहर में 30 दिन तक एसडीआरएफ ने हुक लगाकर सर्च अभियान चलाया। मगर, हर बार हुक फंस जाने से टीम को फजीहत झेलनी पड़ी। यहीं से विक्रम के दिमाग में देशी अंडर वाटर हुक का आइडिया आया।
40 दिन के भीतर सिर्फ हजार रुपये खर्च कर विक्रम ने रिमोट और मोटर चलित हुक तैयार किया
इसके बाद करीब 40 दिन के भीतर सिर्फ हजार रुपये खर्च कर विक्रम ने रिमोट और मोटर चलित हुक तैयार किया। इस हुक को एसडीआरएफ ने गंगा, टौंस नदी समेत अन्य बहते और गहरे पानी में ट्रायल किया, जो सफल रहा। अब इस हुक को एसडीआरएफ अपने रेस्क्यू कार्य में शामिल करेगा।
हुक से उठाया जा सकता है पांच सौ किग्रा वजन
वायर लगा हुक राफ्ट से संचालित होगा। राफ्ट में मोटर और रिमोट से इसका संचालन किया जाएगा। सात किलोग्राम वजन के इस हुक से नदी में 500 किलोग्राम वजन तक उठाया जा सकता है। यह हुक रिमोट से 50 से 100 मीटर दूरी तक रेस्क्यू में उपयोग किया जा सकता है।
सोनार और ड्रोन का विकल्प भी करेंगे तैयार
विक्रम ने कहा कि अंडर वाटर हुक तैयार करने के बाद वह पानी में संचालित ड्रोन और सोनार सिस्टम का विकल्प तैयार करेगा। इसके लिए उसने तकनीक तैयार कर ली है। अभी तक एसडीआरएफ के पास जो ड्रोन और सोनार सिस्टम है, वह गहरे समुद्र के साफ पानी में उपयोग होते हैं। जबकि उत्तराखंड में मटमैला यानि गंदा पानी में इसका उपयोग कई बार जोखिम भरा होता है। ऐसे में यहां के हिसाब से ड्रोन और सोनार सिस्टम की जरूरत है।