देहरादून : उत्तराखंड को हड़ताली राज्य का नाम भी दिया गया है। क्योंकि अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए समय समय पर विभिन्न विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा हड़ताल की गई और धरना प्रदर्शन किया गया। त्रिवेंद्र रावत के कार्यकाल के दौरान तो हड़तालों की झड़ी लग गई थी। चाहे शिक्षा विभाग के कार्मिक हों या बिजली विभाग या आशा वर्कर, सभी ने मांगों को पूरा कराने के लिए कई दिनों तक हड़ताल की। फीस मांफी के लिए मेडिकल के छात्र-छात्राओं ने कई दिनों तक धरना स्थल पर डेरा डाले रखा। वहीं एक बार फिर से ऐसे ही हालात उत्तराखंड में पैदा हो गए हैं।
14 सूत्रीय मांगों लेकर हड़ताल का ऐलान
दरअसल पुरानी पेंशन, पुरानी एसीपी समेत 14 सूत्रीय मांगों लेकर बिजली के तीनों निगमों के अभियंताओं और कार्मिकों ने छह अक्टूबर से हड़ताल का ऐलान कर दिया है। लेकिन सरकार भी इनसे सख्ती से निपटने के फॉर्म में है। जी हां बता दें कि कार्मिकों के हड़ताल के ऐलान के बाद सरकार ने एस्मा लागू करने के साथ ही तीनों निगमों के कार्मिकों की छुट्टी पर रोक लगा दी है।
दीपक रावत ने गांधी जयंती के दिन ही निकाल दिया था आदेश
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईएएस दीपक रावत ने गांधी जयंती के दिन ही एक आदेश निकाल कर कर्मचारियों को कार्यालय बुला लया ।इतना ही नहीं उन्होंने कर्मचारियों की रविवार की छुट्टी भी अचानक निरस्त कर दी थी जिससे विभाग में हड़कंप मच गया था। कर्मचारी हैरान रह गए थे। लेकिन अब सरकार ने और सख्त रुख अपनाया है।
सरकार ने मांगी पड़ोसी राज्यों से मदद
मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में जलविद्युत उत्पादन, पारेषण से लेकर बिजली आपूर्ति के लिए वैकल्पिक बंदोबस्त किए गए हैं। सरकार ने पड़ोसी राज्यों से मदद मांगी है। बता दें कि सरकार ने भाजपा शासित राज्यों उत्तरप्रदेश, हिमाचल और हरियाणा के साथ ही केंद्रीय ऊर्जा उपक्रमों के अभियंताओं और कार्मिकों को मांगा है जिन्हें राज्य में तैनात किया गया है। हड़ताल से तीन दिन पहले यानी रविवार से ही राज्य की विद्युत व्यवस्था वैकल्पिक कार्मिकों के सुपुर्द होगी। इसके लिए बाकायदा ट्रायल किया गया है।