देहरादून- उत्तराखंड बोर्ड के परीक्षा परिणाम जारी हो गए हैं। बोर्ड परीक्षाओं में बेहद निराशाजनक प्रदर्शन ने सरकारी स्कूलों की साख पर बड़ा दाग लगा दिया है। सालाना 50 अरब से ज्यादा का बजट, 30 हजार से ज्यादा अफसर और एलटी-प्रवक्ता शिक्षकों की फौज के बावजूद इंटर और हाईस्कूल की परीक्षाओं में सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन बेहद शर्मनाक है।
12वीं और 10वीं के टॉप 10 में केवल एक सरकारी स्कूल के छात्र ने स्थान पाया है
हाल यह है कि 12वीं और 10वीं के टॉप 10 में केवल एक सरकारी स्कूल के छात्र ने स्थान पाया है। हैरानी वाली बात यह भी है कि अपेक्षाकृत ज्यादा संसाधन-सुविधा वाले मैदानी जिलों के मुकाबले पहाड़ के छात्रों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। रिजल्ट देखकर साफ-साफ संदेश जा रहा है कि सरकारी शिक्षकों पर स्कूलों में शिक्षा में सुधार के बजाए हर वक्त सुगम-दुर्गम में तबादलों का रोना, वेतनमान, नई-नई छुट्टियों, प्रमोशन और इनके लिए धरने-प्रदर्शनों की चिंता ज्यादा हावी रही है।
दूसरी तरफ बोर्ड परीक्षा में निजी स्कूलों का रिजल्ट अच्छा रहा. निजी स्कूलों के बच्चों के बेहतर प्रदर्शन से शिक्षकों में खुशी की लहर उठी। इंटर की टॉप 25 रैकिंग में ज्यादा छात्र निजी और अशासकीय स्कूलों के हैं। तो हाईस्कूल में भी यही स्थिति है।
अधिकारियों का कहना है कि बोर्ड रिजल्ट के बाद अब निसंदेह जवाबदेही तय की जाएगी। विद्यालयी शिक्षा परिषद के नतीजों का विश्लेषण कराया जा रहा है। यह देखा जा रहा है कि दुर्गम क्षेत्रों में छात्र आखिरकार किस प्रकार बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और मैदानी सुगम स्थानों का लचर प्रदर्शन क्यों है? सुधार के लिए क्या प्रयास किए जाएंगे।