देहरादून(मनीष डंगवाल) : लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले उत्तराखंड में ऐसा लग रहा था कि भाजपा 5 सीटों को बड़ी आसानी से निकाल लेगी और ऐसा इसलिए लग रहा था क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर उत्तराखंड में भाजपा कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल कर लेगी। लेकिन जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का समर आगे बढ़ रहा है उससे लग रहा है कि लोकसभा की 5 सीटें जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा. उत्तराखंड में बेशक भाजपा की सरकार और 70 में 57 विधायकों की संख्या बल के साथ कांग्रेस से ज्यादा मजबूत संगठन है लेकिन जनता का विश्वास इस बात पर भाजपा जीत पाएंगे इस सवाल का जवाब 23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पता चल पाएगा…लेकिन जिस तरह से उत्तराखंड में कुछ हद तक राहुल गांधी के रैली के बाद माहौल बदला है और मनीष खंडूरी के कांग्रेस ज्वॉइन करने से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में रक्त संचार बढ़ा है उसे लगता नहीं है की उत्तराखंड में पांचों सीटें भाजपा को आएंगे. मनीष खंडूरी बेशक पौड़ी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा होंगा लेकिन ये मनीष खंडूरी के आने से 5 लोकसभा सीट पर कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है कि अगर कांग्रेस बीसी खंडूरी के नाम का इस्तेमाल मनीष के बहाने सही रूप में कर सके।
मौजूदा सांसदों को टिकट देना भी हार का बन सकता है कारण
उम्मीद लगाई जा रही है कि भाजपा 5 सीटों में से 4 सीटों पर वर्तमान सांसदों को टिकट देगी और अगर भाजपा ने ऐसा किया तो फिर 4 सीट पुराने चेहरों के भरोसे जीतना भाजपा के लिए टेड़ी खीर भी साबित हो सकता है। क्योंकि जिन 4 सीटों पर भाजपा पुराने चेहरों को रिपीट करेगी उनके प्रति जनता में आक्रेाश भी है और ऐसे में भाजपा के लिए यही सही रणनीति होगी कि वह कुछ सीटों पर नए प्रत्याशी दे तो मोदी के चेहरे के सारे नए चेहरे जीत की गांरटी बन सकते हैं। कुछ हद तक कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी के चेहरे भी भाजपा की जीत हार में बड़ा अंतर डाल सकते हैं।
भाजपा के लिए मुश्किल सीटें
उत्तराखंड में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती हरीश रावत वाली सीट होगी क्योंकि हरीश रावत जनाधार के नेता हैं और जिस भी सीट से हरीश रावत खड़े होंगे उस सीट पर मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा होगा…बेशक हरीश रावत 2017 के विधानसभा चुनाव में दो सीटों से विधायक का चुनाव हार गए थे लेकिन हरीश रावत एक मात्र ऐसे नेता 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद जो जनता की बीच सबसे ज्यादा रहेे हैं…हरीश रावत के मुख्यमंत्री के रहते दो सीटों से हारना भाजपा को ठीक वैसे ही लेना होगा जैसे की 2012 के विधान सभा चुनाव में बीसी खंडूरी मुख्यमंत्री के रहते चुनाव हार गए थे लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता ने उन्हें बड़ी जीत दिलाकर उस हार को भुला दिया…ठीक उसी तरह हो सकता है हरीश को भी जनता यही उपहार इस बार के चुनाव में लोकसभा पहुंचाकर दे।
पौड़ी सीट पर कांटो भरी राह
बीसी खंडूरी के पुत्र मनीष खंडूरी के कांग्रेस में जाकर पौड़ी लोकसभा सीट पर हाथ के निशान पर लड़ना तय माना जा रहा है. कांग्रेस के पास इस सीट को पहले तो हासिल करना बड़ा मुश्किल माना जा रहा था लेकिन मनीष के इस सीट से चुनाव लड़ने से कांग्रेस को लग रहा है कि पौड़ी सीट पर कांग्रेस बड़े अंतर से चुनाव जीत सकती है। मनीष खंडूरी अगर इस सीट पर केवल अपनी उस बात को लेकर चुनाव में जाएं कि क्यों उन्होने कांग्रेस ज्वाईन की है और भाजपा ने अंतिम समय में उनके पिता का अपमान रक्षा समिति के अध्यक्ष पद से हटा कर किया है तो मनीष खंडूरी पौड़ी लोकसभा सीट पर भाजपा को झटका देने में कामयाब हो सकते हैं।
रानी के भरोसे टिहरी की डगर मुश्किल
टिहरी सीट पर राज परिवार को चुनावी मैदान में उतराना भाजपा जीत के लिए जीत की गांरटी ज्यादा माना जाता है, लेकिन इस बार भाजपा के लिए ये गांरटी मुसीबतें खड़ी कर सकती है क्योंकि अब वोट उस दौर का नहीं रहा जब वो ये सोचें की वोट राजपरिवार को ही करना है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भले की रानी माला राज लक्ष्मी मोदी लहर में लोकसभा पहुंच गई हो लेकिन इस बार की डगर कुछ मुश्किल लग रही है। इसलिए अगर इस सीट से भाजपा पूर्व सीएम विजय बहुगुणा को टिकट देते हैं तो भाजपा के लिए ज्यादा फायदे मंद हो सकता है। कांग्रेस के कौन इस सीट पर प्रत्याशी होगा वो भी भाजपा के लिए महत्पूर्ण होगा। अगर कांग्रेस के बड़े चेहरे पर दाव खेला तो सीट कांग्रेस की झोली में आ सकती है।
भगत दा जीत की गांरटी
नैनीताल सीट पर माना जा रहा है कि अगर भाजपा ने भगत सिंह कोश्यारी पर ही दांव खेला तो भगत दा भाजपा के लिए जीत की गांरटी है,क्योंकि नैनीताल सीट पर न तो कांग्रेस के पास हरीश रावत के अलावा काई बड़ा चेहरा है और न भाजपा के पास,…से में अगर हरीश रावत कांग्रेस से हरिद्धार से चुनाव लड़ते हैं और भाजपा कोश्यारी पर ही नैनीताल सीट पर दांव खेलती है तो कोश्यारी भाजपा के लिए जीत की गांरटी बन जाएंगे।
अल्मोड़ा सीट पर कड़ा होगा मुकाबला
अल्मोड़ा सीट पर भी भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला कड़ा होगा…ये सीट भी वैसे भाजपा के लिए मुफिद रही है लेकिन जिस तरह से इस सीट से भाजपा के सांसद और केंद्री में कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा को कुछ क्षेत्रों में खुला विरोध हो रहा है वह भाजपा के लिए मुश्बितों से कम नहीं है. कांग्रेस इस सीट से राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा पर दांव लगाने के मूड में दिखाई दे रही है,ऐसे में इस सीट पर मुकाबला 50 – 50 नजर आ रहा है।
मिथक तोड़ पाएंगे त्रिवेंद्र
भाजपा उत्तराखंड की 5 लोकसभा सीट जीत पाएंगी ये कुछ हद तक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भी निर्भर करता है क्योंकि अब तक उत्तराखंड को कोई ऐसा मुख्यमंत्री नहीं हुआ जिसने मुख्यमंत्री रहते हुए 5 लोकसभा सीट पार्टी को जीता दी हों. राज्य गठन के बाद पहली बार 2004 के लोकसभा चुनाव में राजनीति के पण्डित कहलाए जाने वाले पण्डित नारायण दत्त तिवारी भी कांग्रेस को 3 सीटें जिता पाए थे…
वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सरकार प्रदेश में भी और मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी थे. भाजपा को ये उम्मीद थी की बीसी खंडूरी मुख्यमंत्री के नाते एक भी सीट 5 सीटों में से नहीं जिता पाए और 5 लोकसभा सीट हारने के चलते मुख्यमंत्री की कुर्सी भी खंडूरी को गंवानी पड़ी। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री हरीश रावत थे…नतीजा सबको मालूम है कि कांग्रेस प्रदेश की 5 लोकसभा सीट हार गई, इसलिए कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की जनता के मूड़ को भांपना मुश्किल है कि जनता के किसके साथ है इसलिए भाजपा को इस गलत फैमी में नहीं रहना चाहिए कि 5 सीटें आसानी से भाजपा के झोली में आ जाएंगी। बस 5 सीट प्रदेश की भाजपा में आएं तो भाजपा को दुआ करनी चाहिए कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस बार मिथक तोड़ते हुए 5 सीट जिताने में कामयाब हों.