बागेश्वर: चिपको आंदोलन के बारे में दुनिया जानती है। रैणी गांव और गौर देवी का वो आंदोलन पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बना। ऐसा ही एक आंदोलन फिर खड़ा हो रहा है। बागेश्वर के कमेड़ीदेवी-रंगथरा-मजगांव-चौनाला मोटर मार्ग के निर्माण की जद में आ रहे पांच सौ से अधिक पेड़ों को बचाने के लिए बागेश्वर के जाखनी की महिलाओं ने मोर्चा संभाल लिया है। गांव की महिलाओं ने ‘एक महिला, एक पेड़’ की तर्ज पर पेड़ों को अपने बच्चों की तरह बचाने का संकल्प लिया है। गांव की सभी महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर इन्हें काटने का विरोध किया।
महिलाओं का कहना है कि चाहे जो हो जाए, वे सड़क के लिए इन पेड़ों को नहीं कटने देंगी। यदि शासन-प्रशासन ने जबरन पेड़ काटने की कोशिश की तो जबर्दस्त प्रदर्शन कर आंदोलन करेंगी। सोमवार को गांव की महिलाओं ने मोटर मार्ग निर्माण का विरोध करते हुए शासन और प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। इसके बाद महिलाएं सर्वे के तहत काटे जाने वाले पेड़ों से लिपटकर खड़ीं हो गईं। महिलाओं ने कहा कि उन्होंने इन पेड़ों की उन्होंने अपने बच्चों की तरह देखभाल की है। इन्हें किसी भी सूरत में कटने नहीं दिया जाएगा।
ग्रामीणों ने कहा कि जहां से सड़क प्रस्तावित है उससे भी पेयजल स्रोतों पर खतरा मंडरा रहा है। लोगों का आरोप है कि संबंधित विभाग सर्वे में कटने वाले पेड़ों की संख्या कम बता रहा है, जबकि सड़क की जद में इससे कहीं अधिक पेड़ आ रहे हैं। ग्रामीणों ने कहा कि अपने नौले, धारों की रक्षा और वन पंचायत के पेड़ों की सुरक्षा के लिए वे जान की बाजी लगाने के लिए तैयार हैं।
कमेड़ीदेवी-रंगथरा-मजगांव-चैनाला मोटर मार्ग का ग्रामीण लंबे समय से विरोध कर रहे हैं। ग्रामीणों के विरोध के चलते कई बार सड़क निर्माण का कार्य प्रभावित भी हुआ। आखिरकार, पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में सड़क निर्माण का कार्य शुरू हो सका। वहीं, ग्रामीणों का कहना है कि मजगांव तक मोटर मार्ग का कटान पूर्व में ही हो चुका है।
उसके आगे सड़क कटान से जाखनी गांव के वन पंचायत का पूरी तरह से विनाश हो जाएगा। कहा कि प्रशासन इस मार्ग को खारीगड़ा तोक से मजगांव तक बनाए। इसमें किसी भी ग्रामीण को आपत्ति नहीं है। ग्रामीणों ने प्रशासन से वनों पर निर्दयता से मशीन चलाने की बजाय पेड़ों को बचाने के लिए वैकल्पिक मार्ग निकालने की मांग की है।
विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण को काफी नुकसान हो चुका है। जंगल के जंगल विकास की भेंट चढ़ चुके हैं। प्राकृतिक जल स्रोतों का नामोनिशान तक मिट गया है। सुविधाओं की लालसा से अधिकतर लोग पर्यावरण की इस दुर्दशा को चुपचाप सहन कर लेते हैं, लेकिन जाखनी गांव की महिलाओं ने पेड़ों को काटने का विरोध तेज कर दिया है।