देहरादून: डोबरा-चांठी पुल । ये उस पुल का नाम है, जिसके बनने से प्रतापनगर क्षेत्र के लोगों को कालापानी की सजा की और 14 सालों का वनवास से मुक्ति मिली है। टिहरी डैम बनने के बाद क्षेत्र के लोगों को या तो कई किलोमीटर दूर घूमकर टिहरी आना पड़ता था या फिर झील में मोटर वोट चलने का इंतजार करना पड़ता था। इस पुल के निर्माण की नींव 14 साल पहले पड़ गई थी। लेकिन, इसका निर्माण त्रिवेंद्र सरकार आने के बाद ही पूरा हो पाया।
उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार ने आते ही इसे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल किया और पुल की कमियों को दूर करना शुरू कर दिया। इन प्रयासों ने प्रतापनगर क्षेत्र के लोगों की 14 साल पुरानी मांग को पूरा कर उनके सपनों को साकार कर दिखाया। टिहरी झील पर देश के सबसे लंबे डोबरा–चांठी सस्पेंशन ब्रिज का निर्माण पूरा हो चुका है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्रद सिंह रावत ने इसका शुभारंभ कर इसे प्रतापनगर क्षेत्र की जनता को समर्पित किया।
त्रिवेंद्र रावत ने सत्ता संभालने के बाद इस पुल के निर्माण के लिए एक बार में ही पूरे बजट की व्यवस्था कर दी और निर्माण एजेंसी को निर्माण समय पर पूरा करने का लक्ष्य दिया। इतना नहीं 2006 से भागीरथी नदी पर बांध प्रभावित क्षेत्र प्रतापनगर और थौलधार को जोड़ने के लिए बन रहे इस पुल के निर्माण में कोई कोताही नहीं होने दी। उन्होंने इसके निर्माण कार्यों की माॅनीटरिंग खुद की औ लगातार अधिकारियों को पुल निर्माण समय पर पूरा करने के लिए निर्देश देते रहे। उसीका नतीजा है कि पुल समय पर बन पाया।
पुल के बनने से प्रतापनगर, लंबगांव और धौंतरी क्षेत्र की करीब 3 लाख से ज्यादा की आबादी को लाभ हुआ है। लोगों को टिहरी जिला मुख्यालय तक आने के लिए पहले 100 किलोमीटर से अधिक दूरी तय करनी पड़ती थी। यह दूरी अब घटकर आधी रह गई है। पुल नहीं बनने तक लोग यह कहा करते थे कि उनको कालापानी की सजा दी गई है। लेकिन, अब त्रिवेंद्र सरकार ने उनकी इस कालापानी की सजा को समाप्त कर दिया है।