देहरादून : उत्तरकाशी से निकला बीज बम अभियान अब देशभर में पहुंच चुका है। लोग जंगलों में बस की तरह बीज से भरे बम गोले फेंकते हैं और पौधे उग आते हैं। दरअसल, यह एक पर्यावरण संरक्षण का अभियान है। इसके जरिये जंगलों में फलदार, छायादार और अन्य तरह के औषधीय पौधों को कम खर्च में उगाये जाने का सफल प्रयास किया जा रहा है। 100 से अधिक जगहों पर अब तक इस अभियान को चलाया गया और ज्यादात्तर जगहों पर इसे सफलता मिली है। आज से बीज बम अभियान उत्तराखंड में भी सरकार के सहयोग से चालये जाने की शुरूआत हो गई है। पहली बार इस अभियान को सरकार ने आधिकारिक रूप से हरेला कार्यक्रम में शामिल किया है।
वन्यजीवों से बचाएगा
बीज बम ऐसा अभियान है, जिससे जंगलों में पौधे तो उगेंगे ही। लोगों को जगली जानवारों खासकर बंदर और लंगूरों से मुक्मि मिलेगी। बंदर अब गांवों में आकर घरों से सामान उठा ले जाते हैं। इतना ही नहीं लोगों पर भी हमला करते हैं। बीज बम के जरिये जंगली जानवारों को जगहल में ही खाना उपलब्ध कराना है। उसके लिए बीज बम के जरिए जंगलों में फलदार बीजों को एक मिट्टी और गोबर के गोले के भीतर अलग-अलग तरह के बीज रखकर फेंका जाता है। जिसके बाद वही बीज पौधे बनते हैं। प्राकृतिकतौर पर उगने वाले पौधे काफी तेजी से बढ़ते हैं।
देशभर में बीज बम अभियान
बीज बम अभियान 25 से 31 जुलाई तक पूरे देश में चलेगा। कुछ राज्यों में इस ‘बीज बम सप्ताह‘ नाम भी दिया गया है। हिमालयन पर्यावरण जड़ी-बूटी एग्रो संस्थान (जाड़ी) से जुड़े 40 युवा इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। प्रदेश में अब तक 500 से ज्यादा लोग अभियान से जुड़ चुके हैं। बीज बम अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल कहते हैं कि यह कोई नई बात नहीं है। जापान और दूसरे देशों में ये तकनीकी सीड बॉल के नाम प्रचलित है और वहां यह एक परंपरा बन चुकी है।
कम खर्च, ज्यादा फायदा
पौधारोपण में काफी खर्च होता है। जबकि बीज बम अभियान शून्य बजट अभियान है। द्वारिका सेमवाल का कहना है कि इसमें मिट्टी और गोबर को पानी के साथ मिलाकर एक गोला बनाते हैं। जलवायु और मौसम के अनुसार उस गोले में कुछ बीज डाल दिये जाते हैं। इस बम को जंगल में कहीं भी छोड़ देते हैं। सबसे पहले इसका प्रयोग उत्तरकाशी जिले के कमद से की। उनका पहला प्रयास सफल रहा। उन्होंने पहले बेल वाली सब्जियों के बीजों पर प्रयोग किया।
वैज्ञानिक भी देते हैं सलाव
फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए कृषि वैज्ञानिक भी इस तकनीक को अपनाने की सलाह देते हैं। इसके तहत अगर जंगलों में खाद्य श्रृंखला तैयार की जाए तो परंपरागत फसलों को भी वन्य जीवों से बचाया जा सकता है। बीज बम में अल्पकालीन और दीर्घकालीन दोनों तरह के बीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अल्पकालीन बीजों में कद्दू, मटर, लौकी, मक्का जैसी मौसमी सब्जियों और अनाजों के बीज शामिल हैं, जो एक या दो महीने में खाने के लिए तैयार हो जाते हैं। दीर्घकालीन बीजों में स्थानीय जलवायु के अनुसार आम, आड़ू, शहतूत, सेब, नाशपाती जैसे फलों के बीज बम के डालकर फेंके जा रहे हैं।
फैलता जा रहा है अभियान
बीज बम अभियान काफी तेजी से फैल रहा है। ये अभियान अब बड़ा रूप लेने लगा है। अभियान से जुड़ने के लिए लोगों में खासा उत्साह देखा जा रहा है। अब तक तीन सौ से ज्यादा ग्राम पंचायतें और दो स्कूलों ने अभियान में शामिल होने की इच्छा जाहिर की है। अधिकांश की सहमति भी मिल चुकी है।