उत्तकाशी के सिलक्यारा में टनल में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए हरसंभव कोशिश की जा रही है। अब सुरंग से मजदूरों को बाहर निकालने के लिए रैट माइनर्स सिलक्यारा पहुंच गए हैं। ये चूहों की तरह सुरंग खोदकर मजदूरों को बाहर निकालेंगे।
रैट माइनर्स पहुंचे सिलक्यारा
रैट माइनर्स मजदूरों को बाहर निकालने के लिए उत्तरकाशी के सिलक्यारा पहुंच चुके हैं। सुरंग के अंदर मैन्युअल ड्रिल के लिए विशेषज्ञ श्रमिकों को बुलाया गया है। रैट माइनर्स ही विशेषज्ञ श्रमिक हैं। इन्होंने सुरंग के अंदर खुदाई का काम शुरू कर दिया है। उत्तराकाशी पहुंची रैट माइनर्स की टीम में पांच रैट माइनर राकेश राजपूत, प्रसाद लोधी, बाबू दामोर भूपेंद्र राजपूत, जैतराम केलपुरा टीकमगढ़ मध्य प्रदेश के निवासी हैं। जबकि एक बिहार निवासी है।
कौन हैं रैट माइनर्स ?
रैट माइनर्स का नाम सुनकर आपके दिमाग में एक ही सवाल आ रहा होगा कि ये कौन हैं और कैसे काम करते हैं ? रैट शब्द यानी चूहा इनके नाम से ही इनके काम का अंदाजा लगाया जा सकता है। रैट माइनर्स चूहे की तरह कम जगह में तेज खुदाई करने वाले विशेषज्ञ हैं। रैट माइनर्स सुंरग के अंदर खुदाई करेंगे। इनके पास दिल्ली और अहमदाबाद में इस तरह का काम का अनुभव है।
रैट माइनर्स कैसे मजदूरों को निकालेंगे बाहर ?
रैट माइनर्स 41 मजदूरों को खुदाई कर बाहर निकालेंगे। रैट माइनर्स की टीम में से सबसे पहले दो लोग पाइपलाइन में जाएंगे। इन दोनों में से एक आगे का रास्ता बनाएगा जबकि दूसरा मलबे को ट्रॉली में भरेगा। बाकी बाहर खड़े चार लोग पाइप के अंदर से मलबे वाली ट्रॉली को रस्सी के सहारे बाहर की तरफ खींचेंगे। एक बार में छह से सात किलो मलबा बाहर लाएंगे। अंदर खुदाई करने के लिए गए लोग जब थक जाएंगे तो बाहर से दो लोग अंदर जाएंगे और वे दोनों बाहर आ जाएंगे।
छोटी जगह में खुदाई के लिए रैट माईनर्स माने जाते हैं बेस्ट
आपको बता दें कि रैट माईनर्स को छोटी जगहों पर खुदाई के लिए बेस्ट माना जाता है। जिन जगहों पर मशीन से खुदाई करना संभव नहीं होता है उन जगहों पर रैट माईनर्स को भेजा जाता है। इस तकनीक में मजदूर हाथ से धीरे-धीरे खुदाई करते हैं। ज्यादातर रैट माइनिंक तकनीक का इस्तेमाल अवैध कोयला खदान के लिए किया जाता है। प्रशासन की नजर मशीनों और अन्य उपकरणों की मौजूदगी पर आसानी से पड़ सकती है। इसलिए चोरी-छिपे इंसानों से कोयले की छोटी-छोटी खदानों में रैट माइनिंग कराई जाती है।