उत्तराखंड के लिए आज का दिन बेहद ऐतिहासिक माना जा सकता है। त्रिवेंद्र सरकार ने उत्तराखंड को एक बड़ी सौगात दे दी है। उत्तराखंड में अब पिरूल से बिजली बनने लगी है। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गंगोत्री विधानसभा के धनारी के गांव चकोन में पिरूल से बिजली बनाने वाले प्लांट का लोकार्पण किया है। इस प्लांट के जरिए अब पिरूल से 25 किलोवॉट बिजली का उत्पादन किया जाएगा।
उत्तराखंड के जंगलों में गिरने वाली पिरूल न सिर्फ आम लोगों के लिए बल्कि जंगलों की सेहत के लिए भी बेहद नुकसानदायक साबित हुई है। पिछले कई सालों से इस पिरूल ने आग के बवंडर उठाए और बड़े पैमाने पर जंगलों को नष्ट किया। उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग अपने साथ न सिर्फ पेड़ों को जला कर उन्हें राख करती है बल्कि एक इलाके के पूरे इकोसिस्टम को खत्म कर देती रही है। पिछले कुछ सालों में पिरुल उत्तराखंड के जंगलों के लिए खलनायक के तौर पर देखी जाने लगी।
उत्तराखंड में पिरूल से बिजली बनाने की मांग पिछले कई दशकों पुरानी रही है। 90 के दशक से ही उत्तराखंड में वनों की आग को काबू रखने के लिए पिरूल से बिजली बनाने की मांग होती रही है। कई बड़े संस्थानों ने इस संबंध में शोध भी किए। एक मोटे अनुमान के मुताबिक पिरूल की वजह से राज्य में हर साल 10-15 हजार हेक्टेयर जंगल जल जाते हैं।
उत्तराखंड के लिए पिरूल से बिजली उत्पादन एक अन्य और बेहद महत्वपूर्ण माएनों में प्रभावी साबित हो सकता है और वो है रोजगार सृजन। पिरूल के बिजली बनाने के काम में पिरूल को एकत्र करने का काम स्थानीय महिलाओं के जिम्मे आएगा। इससे इन महिलाओं की आर्थिकी में सुधार निश्चित है। शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक एक महिला को प्रतिदिन 500 रुपए तक पिरूल के एकत्रिकरण और उसे बिजली उत्पादन यूनिट तक पहुंचाने में मिल जाएंगे। भविष्य में इस काम में स्थानीय युवाओं को भी रोजगार मिलेगा और स्थानीय स्तर पर आर्थिकी में सुधार होगा।
त्रिवेंद्र सरकार ने इस विषय को गंभीरता से लिया इस बात से अब इंकार नहीं किया जा सकता है। महज वादा भर नहीं बल्कि पिरूल से बिजली बनाने की अवधारणा अब इस राज्य में साकार हो चुकी है। संभवत ये पूरे देश और दुनिया के लिए एक आदर्श योजना के तौर पर देखी जाएगी। भविष्य में जब पारिस्थितिकी तंत्र और मानवीय विकास के आपसी तालमेल की चर्चाएं होंगी तो त्रिवेंद्र सरकार की ये कोशिश उस चर्चा में आधार तल का काम करेगी।