देहरादून: राज्य में बेनामी संपत्तियों को जब्त करने के लिए प्रदेश में सरकार जल्द कानून बना सकती है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि सरकार ने कानून को खाका तैयार कर लिया है। इस कानून के बनने के बाद कोई बच नहीं पाएगा। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए इसे बड़ा निर्णय माना जा रहा है। इससे कई नेता और बड़े अधिकारी बेनकाब होंगे। सीएम के बयान के बाद कई नेता और नौकरशाह सकते में हैं।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई धर्मयुद्ध की तरह
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि बेनामी संपति को जब्त करने के लिए एक कठोर कानून बनाया जाएगा, ताकि प्रदेश में कोई भी भ्रष्टाचारी न पनप सके। साथ ही कहा कि जब्त बेनामी संपत्ति का उपयोग स्कूल, अस्पताल के लिए उपयोग में लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई धर्मयुद्ध की तरह लड़ना होगी।
धारदार होगा नया कानून
उत्तराखंड सरकार भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसी के तहत बेनामी संपत्ति को जब्त करने का कानून लाया जा रहा है। मौजूदा प्रावधान को और सख्त व धारदार बनाने में यह कानून काफी कारगर होगा। 2006 में केंद्र सरकार ने बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन एक्ट बनाया था। बेनामी लेनदेन एक्ट 1988 में संशोधन कर इसे और मजबूत बनाया गया। एक्ट के तहत बेनामी लेनदेन पर रोक है और बेनामी संपत्तियों को जब्त किया जा सकता है।
1988 के कानून में सात साल की सजा
कानून के अनुसार जिसके नाम बेनामी संपत्ति खरीदी गई होती है, उसे बेनामदार कहा जाता है। बेनामी संपत्ति चल या अचल संपत्ति या वित्तीय दस्तावेजों के रूप में हो सकती है। कुछ लोग अपने काले धन का निवेश करते हैं। सामान्य तौर पर इस तरह से अर्जित संपत्तियां बेनामदार के खुद के नाम पर न होकर किसी और के नाम होती हैं। 1988 के काननू संशोधन कर इस बात का प्रावधान किया गया कि केंद्र सरकार के पास ऐसी प्रॉपर्टी को जब्त करने का अधिकार है। बेनामी संपत्ति की लेनदेन के लिए दोषी पाए गए व्यक्ति को सात साल तक की कैद की सजा हो सकती है।