चमोली- देश-दुनिया के सैलानियों को अपनी ओर खींचने वाली फूलों की घाटी आज से सैलानियों के लिए बंद हो गई है। 500 से ज्यादा नस्ल के फूंलों को अपने भीतर समाए फूलों की घाटी के प्रति सैलानियों का आकर्षण खास है। फूलों की घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस. स्मिथ और उनके साथी आर. एल. होल्ड्सवर्थ ने लगाया था। दरअसल, प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक 1931 में गढ़वाल स्थित कामेट शिखर (24,447 फुट) से सफल आरोहण के बाद धौली गंगा के निकट गमशाली गांव से रास्ता भटक जाने के बाद पश्चिम की ओर बढ़ते चले गये। वे 16,700 फुट ऊंचाई का दर्रा पार करते हुए भ्यूंडार घाटी पहुंचे। वहां से जब वह थोड़ा आगे बढ़े तो उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। पहाड़ की गोद में बिखरा सौंदर्य किसी कलाकार के कैनवास में बनी रंग-बिरंगी कलाकृति की तरह नजर आय़ा। घाटी के अदभुत सौंदर्य ने स्मिथ और होल्डसवर्थ को अपना टेंट वही गाड़ लेने के लिए मजबूर कर दिया। सात साल बाद 1937 में फिर दोनों दोस्त यहां आए और फूलों की घाटी पर रिसर्च किया। उसके बाद उन्होंने ‘वैली ऑफ फ्लावर्स’ नामक किताब लिखी। इसी के बाद फूलों की खूबसूरत घाटी की खूबसूरती और खासियत दुनिया के सामने आई। फूलों की घाटी में छोटे-छोटे नालों के किनारे रंग-बिरंगे फूल इस तरह उगे रहते हैं मानो उन्हें क्यारियों में किसी माली ने उगाया हो। बहरहाल फूलों की घाटी आज सूबे की आय का एक बड़ा साधन बन गई है। हजारों की तदाद में सैलानी फूलों की घाटी का दीदार करने पहुंचते हैं। अगस्त माह में जब फलों की घाटी खूबसूरत फूलों से लकदक हो जाती है और अक्टूबर माह में ठंड बढने के साथ-साथ यहां फूलों का मुरझाना शुरू हो जाता है।