पौड़ी गढ़वाल(दीपिका रावत) : इस बात से सभी वाकिफ हैं कि पूरा उत्तराखंड पलायन का दंश झेल रहा है. गांव के गांव खाली हो रहे हैं. लोग शिक्षा, रोजगार और हर व्यवस्था का लुत्फ उठाने के लिए शहरों को ओर जा रहे हैं औऱ गांव बंजर पड़ रहे हैं. खेत तो बंजर हो ही गए हैं लेकिन इसी के साथ गांव और मकान भी बंजर होते जा रहे हैं. जिन घरों में कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थी और बच्चे खेलते थे वहां आज झाड़िया उग आई है. घर वीरान हो गए हैं और पहाड़ रो रहे हैं. पहाड़ और खाली घर ये उम्मीद लगाए बैठे हैं कि फिर कोई आएगा और पूरे गांव में हो-हल्ला होगा. उत्तराखंड के कई गांव वीरान परेशान हैं. अब गांव जाओं तो इक्का-दुक्का लोग ही नजर आते हैं. लोगों ने गायों को पालन छो़ड़ दिया है. खेतों पर कोई काम करता नजर नहीं आता जो की काफी दुखद है और दिल को ठेस पहुंचाने जैसा है.
पौड़ी गढ़वाव जिले का ये गांव होता जा रहा वीरान
जी हां आज हम बात कर रहे हैं पौड़ी गढ़वाल सतपुली से महज 5 किमी दूर पोखड़ा-एकेश्वर मार्ग पर स्थित गांव मलेठी की. जो की अब लगभग खाली हो गया है. कई घर रो रहे हैं. जहां कभी बच्चे खेला करते थे…दादा-दादी, नाना-नानी के नाती-पोते खेला करते थे, झगड़ा करते थे वहां आज गाजर घास जम आई है. आपको बता दें कि कभी इस गांव की जनसंख्या 500 से ऊपर थी और अब महज कुछ ही लोग हैं जो यहां गुजर बसर कर रहे हैं. बाजार से राशन लाकर खा रहे हैं. बाजार की सब्जी खा रहे हैं. खेती छोड़ दी है. खेत में गाजर घास जम गई है जिसे देख दुख होता है.
बेहतर शिक्षा पड़ती है महंगी
गांव में टूटे मकान देख दिल सहम गया. कभी वो समय था जब खेतों में लोग काम करते दिखाई देते थे. गाय चराते दिखाई देते थे और पंदेरों में पानी लेने आते थे. बच्चे में 5 लीटर का डब्बा लेकर पानी के लिए लाइन लगातर आते थे लेकिन आज गांव खाली है और खेती करने को कोई तैयार नहीं है वो सिर्फ इसलिए क्योंकि कई चीजों का अभाव है. अच्छी शिक्षा के लिए बच्चों को काफी पैसा खर्च करके दूर-दराज जाना पड़ता है. गांव में बेहतर स्कूल न होने के कारण गांव के बच्चों को स्कूली शिक्षा के लिए सतपुली और कॉलेज की पढ़ाई के लिए गुमखाल, कोटद्वार जाना पड़ता है जो की गांव वालों को काफी महंगा पड़ता है.
शिक्षा के लिए कई किलोमीटर दूर जाते हैं बच्चे
आपको बता दें कि इस गांव के बच्चे(12वीं तक के) बेहतर शिक्षा के लिए गांव से कई दूर औऱ ऊंचाई पर स्थित पणिया गांव जाते हैं…भारी गर्मी में बच्चे पूरी तरह से पसीने से भीग जाते हैं. गांव से स्कूल दूर होने के कारण बच्चों को और भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है खास तौर पर बारिश के समय ऊंचाई वाले रास्ते पर फिसलने का डर रहता है.
अधिकतर बच्चे नशे के आदि
सबसे ज्यादा हैरान कर देने वाली बात ये हैं कि इस गांव में बच्चे बेहद कम हैं लेकिन जो भी हैं वो नशे के आदी होते जा रहे हैं.
सीएम त्रिवेंद्र रावत के गांव के बेहद करीब है ये गांव
और सबसे खास बात ये है कि ये गांव सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के गृह जनपद में है और सीएम त्रिवेंद्र रावत के गांव से बेहद करीब है. जिससे पलायन का दुख और दुगुना हो जाता है क्योंकि राज्य के मुखिया के गांव से बेहद करीब कई गांव खाली हो गए हैं औऱ सरकार हाथ पर हाथ धरे हैं. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज चौबाट्टाखाल से विधायक हैं जो की इस गांव के औऱ कई गांव जो खाली हो रहे हैं, के बेहद करीब है.
औऱ देवभूमि में बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा
सरकार ने पलायन की रोकथाम के लिए पलायन आयोग तो बनाया लेकिन ये पलायन आयोग सिर्फ पलायन की रिपोर्ट पेश करने तक सीमित है सरकार ने वीरान होते पहाड़ों के लिए, रोते गांवों को फिर से हरा-भरा और खुशियों से भरने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. अगर जल्द पलायन को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो एक दिन पहाड़ की खूबसूरती खत्म हो जाएगी औऱ देवभूमि में बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा.
गांव की समस्याएं
रोजगार का ना होना
पानी का अभाव
बेहतर शिक्षा औऱ स्कूल का अभाव
नशे के आदी पुरुष और बच्चे