ब्यूरो- अगर आप इस साल बाबा केदार के दर्शन हेलीकॉप्टर के जरिए करने की सोच रहे हो तो आपको अपना प्रोग्राम फिलहाल कैंसिल करना पड़ेगा।
दरअसल DGCA(नागर विमानन महानिदेशालय) ने अभी तक उत्तराखंड सरकार को केदारनाथ हेली सेवा शुरू करने की इजाजत नहीं दी है।
तय है कि अगर जल्द ही केदारघाटी में हवाई सेवा की इजाजत नहीं मिली तो सरकार को राजस्व का नुकसान होगा और हवाई सेवा देने वाली कंपनियां चांदी नहीं काट पाएंगी। हालांकि केदारघाटी के पालतू मवेशी, वन्यजीव, जंगल और जीवित का दर्जा पा चुके हिमालयी ग्लेशियर खुद को महफूज करेंगे।
DGCA से सूबे की सरकार से पूछा है कि जो ऑपरेटर हेली सेवा देना चाहते हैं वे केदारनाथ हवाई सेवाओं के लिए प्रदेश सरकार की निर्धारित शर्तों का पालन कैसे करेंगे? इससे उड़ान सेवा के कानूनो का उलंघन होगा।
DGCA ने सरकार से कहा है कि पहले वो अपनी तय मानकों में फेरबदल करे तभी हवाई सेवा के लिए इजाजत दी जाएगी। खबर है कि राज्य सरकार की चिट्ठी ही केदार हवाई यात्रा की राह का रोड़ा बन गई है।
बताया जा रहा है कि राज्य सरकार DGCA को जो खत भेजा था उसमें कहा गया था कि, केदार हवाई सेवा की इजाजत एनजीटी के मानकों के मुताबिक दी जाए।
ऐसे मे DGCA ने सरकार से पूछा है कि केदारघाटी में उड़ान सेवा देने वाला हेलीकाप्टर लगातार दो हजार फीट की ऊंचाई कैसे बरकरार रख पाएगा। साथ ही तय मानकों के मुताबिक हेलीकॉप्टर के शोर को 50 डेसिबल पर किस तरह फिक्स किया जाएगा। दरअसल हेलीकॉप्टर का शोर 80 डेसिबल से 85 डेसिबल तक होता है।
गौरतलब है कि साल 2015 में एनजीटी ने अपने आदेश मे राज्य सरकार से कहा था कि पर्यावरण के नजरिए से संवेदनशील इलाके में हवाई उड़ान सेवा के लिए सरकार ऐसी नीति बनाए जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे।
नीति मे शोर का मानक 50 डेसिबल और हेलीकॉप्टर के उड़ान की ऊंचाई का पैमान दो हजार फिट रखा जाए। ऐसे मे माना जा रहा है कि केदारघाटी में इस बार हवाई सेवा से कमाई करना सरकार के लिए तब तक मुश्किल है जब तक सरकार अपने मानकों में बदलाव नहीं कर लेती।