चमोली– जब देश के मैदानी इलाके मई-जून के महीने में जलते हैं तब बदरीनाथ हाईवे के सफर पर गर्म कपड़ों की जरूरत पड़ती है।
रड़ांग बैंड से कंचनगंगा तक बर्फ तीर्थयात्रियों और सैलानियों का खैरमकदम करने के लिए सड़क पर खुद को बिछा देती है। बर्फ की चादर का ठंडा अहसास और दीदार यात्रियों को सुखद अहसास दिलाता रहा है।
लेकिन, इस बार बदरीनाथ धाम जाने वाले तीर्थयात्रियों को वो बर्फीला शानदार नजारा देखने को नहीं मिलेगा। बर्फ पूरे क्षेत्र से रूठ गई है। पर्यावरण पर पैनी नजर रखने वाले इसे आने वाले कल के लिए गंभीर संकेत मान रहे हैं।
बहरहाल शीतकाल के दौरान बदरीनाथ में भारी बर्फबारी होती रही है। हनुमानचट्टी से आगे बदरीनाथ हाईवे भी बर्फ से लकदक रहता है। ऐसे में यात्रा शुरू होने से पहले बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) स्थानीय प्रशासन को गरमियों में हाईवे से बर्फ हटाने में पसीने छूट जाते थे।
लेकिन, इस बार रास्ता साफ है। सड़क पर कहीं बर्फ की चादर नहीं है। शीतकाल में इस बार और सालों के मुकाबले बेहद कम बारिश हुई है लिहाजा बर्फ की दुशाला ओढ़े सैलानियों का दीदार करने वाले पहाड़ इस बार नंग-धड़ग हैं।
गौरतलब है कि बदरीनाथ हाईवे पर पांडुकेश्वर से बदरीनाथ तक 22 किमी क्षेत्र में विनायकचट्टी गदेरा, खचाचड़ा नाला, लामबगड़ नाला और रड़ांग बैंड पर रड़ांग नाला में सात जगहों के अलावा पागलनाला व कंचनगंगा ऐसे स्थान हैं, जहां हिमखंडों को काटने में ही बीआरओ को एक माह से अधिक का समय लग जाता था। लेकिन, इस बार कम बर्फबारी के चलते हिमखंड बड़ा आकार नहीं ले पाए।
श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के सीईओ बीडी सिंह के मुताबिक श्री बदरीनाथ धाम में इस बार ज्यादा बर्फ नहीं है। बदरीनाथ यात्रा मार्ग पर पांडुकेश्वर से बदरीनाथ के बीच हिमखंड हर बार मौजूद रहते थे। लेकिन, इस बार पूरी राह सूनी है। हालांकि, माणा से आगे वसुधारा रूट पर हिमखंड मौजूद हैं।
बहरहाल इस बदली परिस्थितियों को पर्यावरण के जानकार ग्लोबल वार्मिंग का असर भी मान रहे हैं। राजकीय महाविद्यालय जोशीमठ के वनस्पति विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. एसएस राणा के अनुसार “इसे ग्लोबल वार्मिंग का असर कह सकते हैं। हिमालयी क्षेत्र में वाहनों से प्रदूषण बढ़ा है। साथ ही पर्यावरण असंतुलन के अन्य कई कारण भी हैं।”
इसी के चलते बद्रिकाश्रम क्षेत्र में बर्फबारी धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इस बार दिसंबर से फरवरी के बीच बदरीनाथ धाम सहित उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कम बर्फबारी होने से हिमखंड आकार नहीं ले पाए। ऐसे में उन सैलानियों को बेहद निराशा होगी जो मई-जून में बर्फ देखने का ख्वाब सजाकर देवभूमि में दाखिल होते हैं।