देहरादून- पहाड़ी राज्य के जिस हिस्से को संवारने की हसरत से कुर्बानियां दी गई थी वो टुकड़ा अब संवरने लगा है। भाजपा की टीएसआर सरकार का पूरा ध्यान उन पहाड़ों की ओर है जिसे लेकर इससे पहले सरकारें ज्यादा संजीदा नहीं थी। जब से उत्तराखंड वजूद में आया है तब से लेकर अब तक बारीकी से निगाह दौड़ाई जाए तो अब डबल इंजन की सरकार का असर दिखाई दे रहा है।
क्या आप उम्मीद कर सकते हैं कि जिस गांव के बारे में कहावत हो कि ‘घेस के आगे नही देश’, उस गांव के मरीज को गांव में ही दिल्ली के आपोलो जैसे अस्पताल के चिकित्सक परामर्श दे दें। लेकिन टीएसआर राज में अब ऐसा संभव हो गया है।
दुर्गम भूगोल की अनसुलझी समस्याओं को हल करने के लिए सरकार के इरादे जाहिर हो रहे हैं। शौचालय के कमोड में रेत की बोतल भर कर पानी बचाने का बुनियादी संदेश देना हो या फिर मरती हुई नदियों को वृक्षारोपण के जरिए जिंदा करने की कवायद हर एक में त्रिवेंद्र सरकार की सधी और सुलझी हुई सोच दिखाई दे रही है।
राज्य के दुरूह भूगोल से डरकर पहाड़ों में अपनी सेवा देने से कतराने वाले डॉक्टर हों, शिक्षक हों या फिर दूसरे सरकारी कर्मचारी सबको टीएसआर सरकार ने तबादला एक्ट से लाइन पर लाने की बड़ी कोशिश की है। एक्ट और त्रिवेंद्र सरकार की सोच का असर है कि आज राज्य के पहाड़ी जिलों के अस्पतालों से मरीज बिना इलाज के नहीं लौट रहे हैं।
चिकित्सा के कैनवास पर त्रिवेंद्र रावत बतौर सीएम ऐसी तूलिका चला रहे हैं कि मौजूदा वक्त में तकरीबन साढ़े ग्यारह सौ चिकित्सक सूबे के सरकारी अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। तीन दर्जन अस्पतालों में टेलीमेडिसन सेवा शुरू कर दी गई है। जबकि करीब दो दर्जन सरकारी अस्पतालों में टेलीरेडियोलॉजी की सहूलियत मरीजों को दी जा रही है।
टीएसआर सरकार ने उन फरार एबीबीएस डॉक्टरों को भी राज्य में सेवा देने के लिए मजबूर किया है जिन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों के दौर में उत्तराखंड से करार किया था कि अगर उन्हें सस्ती फीस में डॉक्टरी कराई जाएगी तो वे इस राज्य के पहाड़ी इलाकों में अपनी सेवा देंगे। ऐसे डॉक्टरों की खोजबीन जारी है कोई सेवा देने आ रहा है तो कोई करार की रकम वापस देने।
वहीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से भी हालात सुधारने की तैयारी चल रही है। इस वित्तीय वर्ष के लिए सरकार का लक्ष्य है राज्य के 330 ANM उपकेंद्रों को वेलनेस सेंटर के तौर पर विकसित करना। यहां नर्स और फार्मसिस्टो को एक ब्रिज कोर्स को जरिए प्रशिक्षत कर तैनात किया जाएगा, ताकि वे मरीज को गांव में ही टेलीमेडिसन और टेलीरेडियोलॉजी के जरिए देश-प्रदेश के नामी अस्पतालों के डॉक्टरों का इलाज मुहैया करवा सकें।
मतलब साफ है कि जिन पहाड़ो से चिकित्सक पहले कतरा रहे थे तमाम बहाने बना रहे थे जीरो टॉलरेंस पर चल रही डबल इंजन की सरकार के दौर ऐसा होना मुनासिब नहीं है। लिहाजा डॉक्टर पहाड़ चढ़ रहे हैं, वहीं टीएसआर सरकार मरीजों को गांव के आस-पास ही इलाज देने की पूरी कोशिश कर रही है।