रुड़की – ऑलम्पिक में रजत पदक से भारत की रीति झोली को भरने वाली पी.वी.सिंधु को कलक्टर पद पर तैनात बनाने के लिए सूबे की सरकार ने अलग से विधेयक पास किया। जबकि एक उत्तराखंड सरकार है जिसे न अपने राज्य में खेल कल्चर विकसित करने की फिक्र है न खिलाड़ियों की करियर और उन्हे बेहतर माहौल देने की चिंता।
भारतीय महिला क्रिकेट टीम से विश्वकप खेल चुकी एकता बिष्ट हों या मानसी जोशी सभी अपने दम पर उभरी हैं। सरकार ने अब तक कोई बुनियादी सहूलियत नहीं दी है। इतना नहीं रुड़की के गाधोरोणा गाव मे रहने वाले 16 साल के लॉग जंपर सुनील गिरी को उनका राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में 22 प्लस के प्रदर्शन का प्रमाण पत्र नहीं मिला है। जबकि सुनील ने साल 2015-16 में राज्य की ओर से राष्ट्रीय स्तर की स्कूली एथीलैटिक्स प्रतियोगिता में शिरकत की थी।
सुनील और उसका परिवार राष्ट्रीय स्तर के प्रमाण पत्र के लिए कई बार युवा कल्याण अधिकारियों के दफ्तर के चक्कर काट चुके हैं बावजूद इसके उसका प्रमाण पत्र नहीं मिला। जबकि सुनील मे इतना हुनर है कि अब तक दो दर्जन से ज्यादा गोल्ड मैडल और सिल्वर मैडल कई प्रतियोगिताओं में जीत चुका है। दर्जा 12 वीं में पढ़ने वाले लॉग जम्पर सुनील युवा कल्याण विभाग की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहा है।
कितनी हैरानी की बात है एक सरकार खिलाडी को सम्मान देने के लिए सदन मे बिल रख रही है, राज्य में बुनियादी सहूलियते जुटा रही है दूसरी ओर हमारी देवभूमि की सरकार है जहां खिलाडियों का सम्मान और खेल की बुनियादी सहूलियतों की बात तो दूर खिलाड़ी की जीत का प्रमाण पत्र देने के लिए भी उसे एडियां रगड़वाई जा रही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड में खेल की सेहत कैसी है और सरकार खिलाड़ियों के प्रति कितनी संजीदा।