बाजपुर- धन्य हैं सूबे के पहाड़ी जिले में सरकारी अस्पतालों का प्रबंधन। सरकारी मशीनरी कई किलोमीटर दूर देहरादून में बैठी है लिहाजा अस्पतालों में मनमर्जी का अंधेरा कायम है। न सत्ता को तरस आता है न तैनात मुलाजिमों को।
पहाड़ की बेबसी पहाड़ से भी ज्यादा भारी हो गई है। ये इसलिए कहा जा रहा है कि जिस शख्स के सिर पर चोट पौड़ी जिले में लगी उसको टांके पौड़ी के जिला चिकित्सालय में नही बल्कि 400 किलोमीटर दूर बाजपुर के सरकारी अस्पताल में लगे।
धरती के भगवानों को बदनाम करने वाला ये मामला तब उजागर हुआ जब घायल शख्स ने अपनी आपबीती सुनाई। सन्यासी ने बताया कि दो संयासियो के आपसी संघर्ष में वह गंभीर रूप से घायल हो गया। उसे 108 इमरजेंसी सेवा की सहायता से पौड़ी के जिला हस्पताल पहुँचाया गया | लेकिन पौड़ी के जिला अस्पताल में तैनात डॉक्टर ने उसे जरूरी इलाज देने के बजाय बस में बैठा दिया | जबकि घायल सन्यासी के सिर पर खुली गंभीर चोट थी।
जब ये सन्यासी पौड़ी से चल किसी तरहं अपने परिचित के यहाँ बाजपुर आ पंहुचा। हालात देखकर परिचित ने सन्यासी को सरकारी हॉस्पिटल बाजपुर दाखिल करवाया जहां सन्यासी के सर में चोट देख कर डॉक्टर सहम गए। लिहाजा यहां तैनात डॉक्टरों ने सन्यासी के सिर पर 12 टांके लगाए और चोट का इलाज किया।
लेकिन इस घटना ने पौड़ी के जिला अस्पताल की पोल खोलकर रख दी। सवाल उठने लगे हैं कि या तो अस्पताल में नकाबिल डॉक्टर तैनात है या लापरवाह। वरना कोई काबिल चिकित्सक कैसे चोटिल मरीज को देखकर अपना मुंह फेर सकता है.