देहरादून- सूबे में कर्ज तले किसानों की आमदनी को दोगुना करने की जुगत में जुटी राज्य सरकार किसानों को शहद उत्पादन से जोड़ेगी। ताकि किसानों की आमदनी में मौनपालन भी बड़ा जरिया बन सके और साल 2022 तक सूबे का किसान सशक्त मौनपालक बनकर देश दुनिया में अपनी मिसाल दे सके।
जी हां, सूबे की सरकार राज्य के गांव में परम्परागत पेशे को सहकारिता के जरिए विराट रूप देना चाहती है। जल्द ही सरकार इसके लिए सहकारिता के जरिए एक शहद उत्पादन नीति तैयार करने वाली है। जिसके तहत सूबे के किसान अपने घर में उत्पादित शहद को सहकारिता के जरिए बेचेंगे और अपनी आमदनी बढ़ाएंगे। सरकार सूबे के शहद को देश-विदेश में ब्रांडिंग कर बेचेगी।
गौरतलब है कि सूबे के मैदानी और पहाड़ी इलाके की शहद की दुनिया भर में डिमांड हैं। जब राज्य में पलायन का चाबुक नहीं चला था उस दौर में पहाड़ के हर घर में मधुमक्खी पालने का नियम था। मकानों की वास्तुकला में मधुमक्खी के घर के लिए भी फोकस रहता था।
उम्रदराज लोगों की बातों पर यकीन किया जाए तो एक मकान मे तीस-चालीस किलो शहद आसानी से प्राप्त हो जाता था। हालांकि अब मौनपालन की नई तकनीक भी आ गई है लेकिन पलायन की मार ने पहाड़ी गांवों को खाली कर दिया है। हालांकि अब भी चंपावत जिले की शहद उत्पादन में अपनी धाक बरकरार है।
खैर एक बार फिर से राज्य को संवारने की कवायद में सरकार शहद उत्पादन पर भी जोर दे रही है। सबसे खास बात ये है कि सरकार सूबे में उत्पादित शहद की खुद ब्रांडिंग करेगी और बेचेगी। गौरतलब है कि मौजूदा वक्त में तकरीबन 1600 मीट्रीक टन शहद का उत्पादन होता है।
जिसमें तीन सौ टन के करीब शहद देशी मधुमक्खियों से उत्पादित होता है जबकि बाकि शहद यूरोपियन मौन से पैदा होता है। बहरहाल माना जा रहा है कि अगर सब कुछ सलीके से हुआ तो राज्य में मौन पालन किसान की आमदनी बढ़ाने के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।