पर्वतीय खेती को महफूज रखने की कवायद
देहरादून, संवाददाता- लगातार पलायन के घावों से जख्मी और रीते होते पहाड़ की लहलहाती खेती अब खत्म होने की कगार पर पहुंच गई है। कैंसर के अंतिम स्टेज की तरह 16 साल बाद सरकार इलाज करने की पहल कर रही है। हालांकि नए उपाय के जुवे का बोझ युवा आबादी विहीन पहाड़ी खेतों में उम्रदराज कंधे उठा पाएगे या नहीं फिलहाल कहना मुश्किल है लेकिन सरकार अपनी नयी पहल से पहाड़ी खेती को लहलहाता हुआ देखना चाहती है। बहरहाल इंद्र देव की मेहबानी से होने वाली दम तोड़ रही पहाड़ी खेती को ऑक्सीजन देने के लिए सरकार सामूहिक खेती के लिए नियम काएदे बनाने के लिए तैयार दिख रही है। इसके लिए सरकार कैबिनेट में लीजिंग पाॅलिसी रख सकती है। माना जा रहा है कि इस नई नीति से पहाड़ की जमीन के मालिक और उसमे खेती करने वाले दोनो को फायदा होगा। मालिक खेत महफूज रहेगा जबकि खेती करने वाला बिना रोक टोक के खेती कर सकेगा। माना जा रहा है कि पहाड़ी जोत के बिखराव की दिक्कत के निदान के रूप में चकबन्दी पर भी कैबिनेट में चर्चा हो सकती है। वहीं अपने खेत में काम करने वाली महिला को मनरेगा श्रमिक के रूप में पंजीकृत करने के बारे में भी सरकार बड़ा फैसला ले सकती है। खबर है कि सरकार अभी तक सामूहिक खेती के लिये जो एक लाख की धनराशि बिना ब्याज दिये दे रही थी उसे अब अनुदान के रूप में दिये जाने की व्यवस्था भी कर सकती है। हालांकि इसके लिए महिला स्वंय सहायता समूह को प्राथमिकता दी जायेगी। सरकार को उम्मीद है कि इससे तकरीब 20 फीसदी लोग फिर से पहाड़ों में खेती ओर अपना रूझान पैदा करेंगे। हो सकता हो कि सरकार का अंदाजा सही हो लेकिन हकीकत ये भी है कि जब तक पहाड़ों में शहरों की टक्कर वाली बुनियादी सहूलियते नहीं मुहैय्या कराई जाएंगी तब तक न तो पहाड़ का पानी रुकेगा और न जवानी।