पिथौरागढ- सही कहा किसी ने कि पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से उड़ान होती है, मंजिल उसको मिलती है जिसके सपनों में जान होती है। भरा पूरा परिवार ठीक-ठाक कारोबार लेकिन अचानक से एक आग हादसा होता है पिता की मौत जलकर हो जाती है। मां को सदमे से लकवे की मरीज होकर थोड़े अर्से बाद दम तोड़ देती है। बच जाते है दो भाई और एक 2-तीन महीने की बहिन।
परिवार बिखर गया था कोई सहारा नहीं था बड़े भाई के मासूम कंधे पर जिंदगी का भारी बोझ आ गया था। बहिन इतनी छोटी थी कि भाई उसे पाल नही सकता था बेचारे का खुद का तो कोई सहारा नही था। ऐसे में पड़ोस में रहने वाले परिवार ने हमदर्दी दिखाई और बहिन को पालने के लिए ले गए। एक दिन पता चला कि वो परिवार तो न जाने कहां चला गया भाई बेबस था। उसने बहिन की याद दिल में दफ्न कर दी एक उम्मीद के साथ।
जी हां ये किसी हिंदी फिल्म की पटकथा नहीं है। ये हकीकत है धारचूला की मोहित बत्रा की। जिसने पहले पिता को अपनी ही दुकान के अग्निकांंड में स्वाह होते देखा फिर सदमें मे जाती मां को । इतना होने के बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी। अनाथ मोहित ने लोगों की दुकानों में बर्तन मांझ कर,नौकरी करके अपनी और अपने छोटे भाई की न केवल परवरिश की बल्कि आज उसे इस काबिल बना दिया है कि छोटा भाई कल ओवरसियर बन जाएगा। आज छोटा भाई पॉलिटैक्निक कर रहा है तो मोहित ने फिर रेडिमेड का व्यवसाय शुरू कर दिया है।
अब परिवार पटरी पर आ गया तो मोहित बत्रा ने अपनी बहिन भूमिका की तलाश शुरू कर दी। पहले खुद हाथ-पांव मारे बाद में अपनी आप बीती स्थानीय वरदान संस्था को बताई । संस्था ने मोहित की दर्द भरी दास्तान सुनकर भूमिका को ढूढने का मिशन शुरू कर दिया। डेढ महीने बाद मिशन कामयाब हुआ जब संस्था के पदाधिकारी दिल्ली से भूमिका को धारचूला ले आए।
बताया जा रहा है कि जो परिवार भूमिका को ले गया था उसने 11 साल की बच्ची को नेपाली बताकर दिल्ली में काम करने के लिए एक परिवार को दे दिया था । जैसे ही मोहित को अपनी बहिन भूमिका मिली उसकी आंखे आसूंओं से भीग गई। जिसने भी 11 साल बाद भाई बहिन के इस मिलाप को देखा और मोहित के संघर्ष की दास्तान सुनी हर एक की आंख भर आई। सब कह रहे हैं भाई हो तो मोहित बत्रा जैसा जिसने अपना न हौसला तोड़ा न मंजिल से भटका।