पहाड़ के गांव सहूलियतो का इंतजार करते-करते मैदानी इलाकों में सरक गए हैं जबकि मैदान के गांव पास के शहरों का बोझ उठाते-उठाते कस्बों में तब्दील हो रहे हैं। कहीं विकास ने जन्म ही नही लिया तो कहीं आनियोजित विकास के प्रसव को जनते-जनते मैदानी गांव ही खत्म हो गए हैं। बहरहाल सरकार बचे-खुचे गांव को बचाने की कवायद में जुटी है।
खैर केंद्र सरकार ने गायों को बचाने की कवायद करते हुए राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत उत्तराखण्ड ने 33 करोड़ की योजनाए भेजी हैं। इस गोकुल मिशन के तहत उत्तराखंड की बद्री गाय की दूध उत्पादन क्षमता बढ़ाने का काम किया जाएगा।
अब वो काम कागजों में हो या गांवों में ये बात अलग है बहरहाल केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन में उत्तराखण्ड को पूरी मदद दी जाएगी। तय है कि अगर केंद्र सरकार के मिशन पर सूबे के काबिल अफसरों ने मुलाजिमों से जमीन पर सही काम करवाया तो 33 करोड़ की योजनाओं से उत्तराखंड में गंगा यमुना अलकनंदा जैसी नदियों के साथ-साथ दूध की नदियां बहने लगेंगी।