आप यकीन करो न करो लेकिन सच यही है कि जब भारत में ब्रितानी हुकूमत थी तब से पानी के लिए लहू पानी की तरह सड़कों पर बह रहा है। हालांकि गोरी हुकूमत ने झगड़ा सुलझाने की पहल की लेकिन आज वो समझौता ही झगड़े की जड़ बन गया है। जी हां हम दक्षिण की गंगा की बात कर रहे हैं जिसके पानी के लिए लहू पानी की तरह बह जाता है।
आजादी से पहले तमिलनाडू को मद्रास प्रेसीडेंसी कहा जाता था जहां सत्ता ब्रितानी हुकूमत के हाथ में थी जबकि कर्नाटक मैसूर रियासत का हिस्सा था। ऐसे में कावेरी जल बंटवारे को लेकर 1924 में तत्कालीन मैसूर रियासत और मद्रास प्रेसीडेंसी के बीच कावेरी के पानी के लिए एक समझौता हुआ था। लेकिन कर्नाटक को लगता है कि अंग्रेजों ने सही करार नहीं किया था। क्योंकि नदी की बहाव की दिशा में वह पहले पड़ता है इसलिए कावेरी के पानी पर उसका पूरा अधिकार है। जबकि तमिलनाडु में यह आम धारणा है कि उसे 1924 के समझौता ही लागू रहना चाहिए। हालांकि तमिलनाडु की राय यह भी है कि जो नदी अंतरराज्यीय स्वरूप में बहती हो उस पर राज्यों का नियंत्रण नहीं बल्कि केंद्र का हक रहना चाहिए और उसी को पानी की वितरण व्यवस्था बनानी चाहिए।
हालांकि आजादी के बाद 1972 में भारत सरकार ने कावेरी जल विवाद सुलझाने के लिए एक कमेटी बनायी थी जिसकी सिफारिशों के बाद 1976 में कावेरी नदी के चारों दावेदारों कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी के बीच समझौता हुआ था। संसद में समझौते की घोषणा भी की गयी थी लेकिंन हकीकत में उसका पालन नहीं हुआ था।