देहरादून- उत्तराखंड में एक बार फिर 2013 केदारनाथ आपदा की तरह तबाही मच सकती है…ये हम नहीं बल्की सेटेलाइट से ये संदेश मिला है. अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया और गंभीरता से नहीं लिया तो लोगों और सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. जी हां ये तस्वीरें देखने में अपने आप में डरावनी लगती हैं. सेटेलाइट के मिली ये तस्वीरें उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र की हैं.
नीति घाटी की ये तस्वीरें दे रही संकेत, प्रदेश में 2013 से भी भयंकर मच सकती है तबाही
नीति गांव से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर बन रही झील उत्तराखंड मेंं कभी भी बड़ी तबाही मचा सकती है. ये नई झील 2001 से बननी शुरू हुई और अब तेजी से फैल रही है. नीति घाटी की ये तस्वीरें संकेत दे रही हैं कि प्रदेश में 2013 से भी भयंकर तबाही मच सकती है. नीति गांव से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति दो ग्लेशियरों कमेंट और रायकाणा ग्लेशियर के मुहाने पर एक झील का निर्माण हो रहा है.
ये झील 2001 से ही अपने अस्तित्व में आई थी
ये झील 2001 से ही अपने अस्तित्व में आई जो 2018 में एक बहुत बड़ी झील के रूप में विकसित होने लगी है. ये कभी भी उत्तराखंड में आफत ला सकती है. उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र यूसेक उपग्रह से प्राकृतिक झीलों के चित्रों का अवलोकन कर रहा था कि अचानक ज्ञान हुआ कि नीति गांव से ऊपर इस झील को सेटेलाइट से देखा गया. हर साल इस झील का क्षेत्रफल करीब 500 मीटर से 700 मीटर तक बढ़ता नजर आ रहा हैं जो कि चिंता का बड़ा विषय है.
जानकारों से बात गई तो पता चली खौफनाक बात
ग्लेशियर पर झील बनने को लेकर जब जानकारों से बात गई तो एक खौफनाक बात पता चली. उनका कहना है कि ग्लेशियरों के मुहाने पर बनी झील हमेशा मोरेन पर बनती है, लेकिन ये बनती और टूटती रहती हैं. यदि कोई झील लम्बे समय तक और क्षेत्रफल में बढ़ रही है तो वो अवश्य ही हानिकारक है.
खतरा सामने आने के बाद वैज्ञानिक लगे हैं इस पर चिंता जताने
क्योंकि मोरेन की क्षमता बहुत कम होती है जैसे झील में कोई बड़ी हलचल होती है तो इससे बड़ी तबाही भी हो सकती है. जैसे कि 2013 में केदारनाथ के ऊपर बनी चोराबाड़ी ताल ग्लेशियरों के मुहाने पर ही थी, जिसके फटने से बड़ी आपदा प्रदेश में आई थी. उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र यूसेक उपग्रह से प्राकृतिक झीलों की चित्रों का अवलोकन के दौरान मंडरा रहा ये खतरा सामने आने के बाद वैज्ञानिक इस पर चिंता जताने लगे हैं.